महामंत्र > हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे|हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे||

Tuesday, April 23, 2024

मोदी नायक हैं जन-जन के

मोदी नायक हैं जन-जन के।
सच्चे चौकीदार वतन के।।
जनसेवक हैं बिल्कुल कट्टर।
सुख-दुख में साथी निर्धन के।।
खत्म तीन सौ सत्तर कर दी।
मोदी जी हैं धनी वचन के।।
नहीं सहन वे अनय करेंगे।
वाहक भी वे परिवर्तन के।।
महिलाओं को हक दिलवाकर।
पात्र बने हैं अभिनंदन के।।
मन की बात किया करते हैं।
भाव समझते सबके मन के।।
सारा विश्व भरोसा करता ।
कायल हैं सब उनके फन के।।
चलते साथ सभी को लेकर।
रहते हैं वे सबके बनके।
भव्य राम मंदिर बनवाया।
चलते सनातनी अब तनके।।
         रमेश सिंघानिया, बाराद्वार

Thursday, April 4, 2024

मतदाता जागरुकता सलोगन

" देश के नागरिक आप महान
शत प्रतिशत हो मतदान "

 " न दारु न नोट केवल वोट "

" आ रहा है चुनाव पर्व
मतदाताओं के लिए है गर्व "

" भारत देश है महान 
करना है हमें मतदान "

" मत देने का है अधिकार
वोट न जाए कोई बेकार "

" देश को करना है उत्थान
प्रण लो करना है मतदान "

" जब तक न मतदान
तब तक न जलपान "

" न लोभ से न भय से
वोट डाले निर्भय से "

" हे जनता जनतंत्र देवता ! 
वोट के लिए है आह्वान। "

" ले प्रतिज्ञा अटल
वोट के लिए रहें डटल "

" चाचा चाची सुनहु बात
वोट पहले काम बाद "

" जानिए आप चुनाव महत्व
लोकतंत्र के लिए है कर्तव्य "

              - गोपाल पाठक 

होली की अगुआहट में

बहे पवन शीतल बसंती ,
फागुन के फगुनाहट में ।
हो जाते रंगीन दिवाना ,
होली की अगुआहट में ।

हम मनुज क्या देख प्रकृति,
 मादकता बौराय रही ।
तरू ताल तल नग नव छाये ,
कुसुम कलि लहराय रही।

रंग रंगीली बड़ी नविली ,
खिले फूल हर क्यारी से ।
होली गाल गुलाबी चाहे  ,
कर कोमल सुकुमारी से ।।

होली परम पर्व है उनके ,
पिचकारी सी साली हो ।
बड़े नसीब वाले कहलाते ,
अंग रंग जब लाली हो ।

मौन पड़े थे अब नव यौवन ,
वृद्ध हाथ रंग होली है ।
मिले सकल गल वदन कामिनी ,
बिनु बंधन मन होली है ।

लाल हरा पीला नीला ,
बहुरंगी मनवां हो गीला ।
पिचकारी की धार तेज से ,
चलो चलें हम कर लीला ।

- गोपाल पाठक

Tuesday, April 2, 2024

युवा तुम हो किधर

युवा तुम हो किधर ?
कहाँ है शोर ?
रंग चड़ा है ;
चुनाव है ;
कहीं अपने कामों से तो नहीं भटकाव है ?
नहीं ! रैली है ,
जाना है,
दम खम दिखाना है,
और
नेता जी संग थोड़ी तस्वीर खिंचवाना है ।
अच्छा !
तब तो आप बहुत व्यस्त हो !
हाँ ! नेता जी को जिताना है..
क्या कुछ लूट खजाना है ?
क्या क्या ?
भाई ईमानदार है समझदार हैं
हमें भी लगा कुछ मजेदार है ।
मतलब ?
मतलब नहीं मालूम
ठीक है चलता हूँ ?
गाड़ी आ रही है
खाश आप के लिए ?
हाँ हाँ......
तब तो आपकी बहुत पूछ है,
बड़े नेताओं तक पहुँच है,
जी!
आप जनता हैं या नेता हैं ?
मैं ! मैं जनता जनार्दन का नेता हूँ ।
पढ़ाई लिखाई काम धंधा खतम
हाँ हाँ ये सब में नहीं है दम
वाह भाई !
पहले करते थे वैकेन्सी की इंतजार
सरकारी रिज़ल्ट में देखते रहते मेरे यार
हुआ कैसे तुम्हें राजनीति से प्यार ?
ऊब गया था ..
परीक्षा देते थक गया था...
फिर मन में सोंच इसमें जोर जमाया
उसके बाद
उसके बाद क्या ?
देख रहे हो नेताओं से हुआ परिचय
शान शोहरत का हुआ संचय
फेसबुक में लाईक बड़ा
वाट्स अप के स्टेटस में व्यू बड़ा
बस ! इतने के लिए तू हुआ फीदा
पड़ाई लिखाई से हुआ विदा ।
हाँ ! मजा है इसमें
सही कहा
गलत में न सजा है ।

          श्री गोपाल पाठक जी

Thursday, March 7, 2024

ऋतुराज बसंत आगमन

नव उमंग नव रंग छटाएं नव यौवन में प्रकृति ।
ललित कलित वन बाग मनोहर हर पल दिखता हर्षित ।।

ठंडी ठिठुरन कांपती धरती अब ली है अंगड़ाई ।
नीला अम्बर धरा पीताम्बर प्रेमी मन बहकाई ।।

मंद मंद मदमस्त हवाएं गुन गुन धुप सुहानी ।
ऋतुराज बसंत आगमन मन हो चला मनमानी ।।

नील पीत हरीत बहुरंगी सुषमा चहुँ दिश छायी ।
नव पल्लव ले तरू लताएं मादकता अधिकायी ।।

जूही चम्पा बेली गेन्दा सरसों खेत में भाये ।
तिसी फूल गगन उतरे तल स्वर्ग मही बन जाए।।

कलरव करते मधुर ध्वनि में पंक्षी डाली-डाली ।
तितली छम-छम भौंरें गूंजन बगिया क्यारी-क्यारी ।।

ताल तलैया हंसते पंकज मञ्जरी आम बौराये ।
शुभ शुभ मंगल नित हो नूतन गुलशन गुल महकाये ।।

                            श्री गोपाल पाठक जी 

Thursday, February 29, 2024

बालक की सोंच

बाहर बारिश हो रही थी,
 तो तुम सब क्या क्या खरीदोगे ?
किसी ने कहा - मैं वीडियो गेम खरीदुंगा..
किसी ने कहा - मैं क्रिकेट का बेट खरीदुंगा..
किसी ने कहा - मैं अपने लिए प्यारी सी गुड़िया खरीदुंगी..
तो, किसी ने कहा - मैं बहुत सी चॉकलेट्स खरीदुंगी..
एक बच्चा कुछ सोचने में डुबा हुआ था  
टीचर ने उससे पुछा - तुम  
क्या सोच रहे हो, तुम क्या खरीदोगे ?
बच्चा बोला -टीचर जी मेरी माँ को थोड़ा कम दिखाई देता है तो मैं अपनी माँ के लिए एक चश्मा खरीदूंगा !
टीचर ने पूछा - तुम्हारी माँ के लिए चश्मा तो तुम्हारे पापा भी खरीद सकते है तुम्हें अपने लिए कुछ नहीं खरीदना ?
बच्चे ने जो जवाब दिया उससे टीचर का भी गला भर आया !
बच्चे ने कहा -- मेरे पापा अब इस दुनिया में नहीं है  
मेरी माँ लोगों के कपड़े सिलकर मुझे पढ़ाती है, और कम दिखाई देने की वजह से वो ठीक से कपड़े नहीं सिल पाती है इसीलिए मैं मेरी माँ को चश्मा देना चाहता हुँ, ताकि मैं अच्छे से पढ़ सकूँ बड़ा आदमी बन सकूँ, और माँ को सारे सुख दे सकूँ.!
टीचर -- बेटा तेरी सोच ही तेरी कमाई है ! ये 100 रूपये मेरे वादे के अनुसार और, ये 100 रूपये और उधार दे रहा हूँ। जब कभी कमाओ तो लौटा देना और, मेरी इच्छा है, तू इतना बड़ा आदमी बने कि तेरे सर पे हाथ फेरते वक्त मैं धन्य हो जाऊं !
20 वर्ष बाद..........
बाहर बारिश हो रही है, और अंदर क्लास चल रही है !
अचानक स्कूल के आगे जिला कलेक्टर की बत्ती वाली गाड़ी आकर रूकती है स्कूल स्टाफ चौकन्ना हो जाता हैं !
स्कूल में सन्नाटा छा जाता हैं !
मगर ये क्या ?
जिला कलेक्टर एक वृद्ध टीचर के पैरों में गिर जाते हैं, और कहते हैं -- सर मैं .... उधार के 100 रूपये लौटाने आया हूँ !
पूरा स्कूल स्टॉफ स्तब्ध !
वृद्ध टीचर झुके हुए नौजवान कलेक्टर को उठाकर भुजाओं में कस लेता है, और रो पड़ता हैं !

बंधुओं-
मशहूर हो, मगरूर मत बनना
साधारण हो, कमज़ोर मत बनना
वक़्त बदलते देर नहीं लगती.... !!
हमे भी किसी की सहायता करनी चाहिए।
हमे भी किसी का अहसान चुकाना चाहिये।

Saturday, February 24, 2024

एक स्त्री और एक पुरुष

एक प्रश्न मन मे काफी समय से सड़ रहा है,
क्या एक स्त्री और पुरूष के
प्रगाढ़ संबंधों का मापदंड
सिर्फ संभोग है?

क्या देह से देह का घर्षण ही
उनका आखिरी पड़ाव है?

शायद नहीं..
बिल्कुल भी नहीं।

कोई तो अदृश्य बल होता होगा
जो उनको आकर्षित करता होगा 
एक दूसरे की ओर।
कि वो सात फेरों में भी न रहें
पर फिर भी बँधे रहें।
या फिर यूँ कहूँ कि
कोई तो तेजाब होगा
जो गला देता होगा
सारे दकियानूसी रूढ़ियों की रस्सियाँ।

एक स्त्री और पुरुष
कृत्रिमता के आडंबर से परे होकर
साझा भी तो कर सकते है
अपने कॉलेज के अनुभव।
वो बता बताकर हँस सकते हैं कि
प्रोफेसर कितना पकाऊ होता था,
कि लाइब्रेरी में वो घंटों 
किसको ताकते रहते थे। 
कि केमिस्ट्री लैब में 
वो टीचर की नज़र बचाकर
कौन कौन से रसायन मिक्स किया करते थे।
हाँ, क्यों नहीं साझा कर सकते वो ये सब।

वो कर सकते हैं विनिमय
एक दूसरे की कलम से रिसे शब्दों का,
वो छील सकते हैं 
एक दूसरे के हृदयों पे चढ़ी विचारों की परत ... 
वो बटोर सकते हैं 
एक दूसरे की आँखों मे तैरते मीठे कड़वे तजुर्बे... 
और यकीन मानो के
इनमें ज़रा भी देहवासना की गंध नहीं होगी।

माना कि देह आत्मा का आवरण है,
पर क्या ये सम्भव नहीं कि
देह स्पर्श किये बिन ही
दोनों एक दूसरे की आत्माओं को स्पर्श कर लें।
यूँ भी तो संभव है कि
उनका रिश्ता 
सृष्टि के अलिखित संविधान में
एक नया अनुच्छेद जोड़ दे, 
जो पहले कभी न पढ़ा गया हो
न सुना गया हो।

और हो सकता है कि
प्रेम ने अपनी यात्रा में
एक नया गंतव्य निर्धारित किया हो।
जो देह मिलन से उन्मुक्त हो।
जहाँ सिर्फ ठहाके हों
जहाँ एक दूसरे के 
बहते अश्रुओं को पोंछने 
वाली हथेलियाँ हों।
जहाँ एक दूसरे के मनों में पसरे खालीपन
को प्रेम से भरने की होड़ हो।

पर सच्चाई तो यही है कि
स्त्री और पुरुष होने की अनुभूति ही
नहीं पनपने देती
एक विलक्षण नवांकुर को वृक्ष में।
और जो एकाध इस राह पे चलते भी हैं
उनको कभी न कभी 
ये समाज एहसास करवा ही देता है
कि वो एक स्त्री और एक पुरुष हैं।

- कल्पित