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Thursday, April 4, 2024

होली की अगुआहट में

बहे पवन शीतल बसंती ,
फागुन के फगुनाहट में ।
हो जाते रंगीन दिवाना ,
होली की अगुआहट में ।

हम मनुज क्या देख प्रकृति,
 मादकता बौराय रही ।
तरू ताल तल नग नव छाये ,
कुसुम कलि लहराय रही।

रंग रंगीली बड़ी नविली ,
खिले फूल हर क्यारी से ।
होली गाल गुलाबी चाहे  ,
कर कोमल सुकुमारी से ।।

होली परम पर्व है उनके ,
पिचकारी सी साली हो ।
बड़े नसीब वाले कहलाते ,
अंग रंग जब लाली हो ।

मौन पड़े थे अब नव यौवन ,
वृद्ध हाथ रंग होली है ।
मिले सकल गल वदन कामिनी ,
बिनु बंधन मन होली है ।

लाल हरा पीला नीला ,
बहुरंगी मनवां हो गीला ।
पिचकारी की धार तेज से ,
चलो चलें हम कर लीला ।

- गोपाल पाठक