बहे पवन शीतल बसंती ,
फागुन के फगुनाहट में ।
हो जाते रंगीन दिवाना ,
होली की अगुआहट में ।
हम मनुज क्या देख प्रकृति,
मादकता बौराय रही ।
तरू ताल तल नग नव छाये ,
कुसुम कलि लहराय रही।
रंग रंगीली बड़ी नविली ,
खिले फूल हर क्यारी से ।
होली गाल गुलाबी चाहे ,
कर कोमल सुकुमारी से ।।
होली परम पर्व है उनके ,
पिचकारी सी साली हो ।
बड़े नसीब वाले कहलाते ,
अंग रंग जब लाली हो ।
मौन पड़े थे अब नव यौवन ,
वृद्ध हाथ रंग होली है ।
मिले सकल गल वदन कामिनी ,
बिनु बंधन मन होली है ।
लाल हरा पीला नीला ,
बहुरंगी मनवां हो गीला ।
पिचकारी की धार तेज से ,
चलो चलें हम कर लीला ।
- गोपाल पाठक