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Tuesday, October 21, 2008

हिन्दी महिमा

श्री जानकीवल्लभो विजयते
हिन्दी महिमा 
कोटि- कोटि  कंठों  से  होकर   गूँज  रही   जो  वाणी  है. 
वह  प्रिय भाषा  हिन्दी है,   हिन्दवी है,   हिन्दुस्तानी है. 
वह   तत्सम है,    तद्भव है,    देशज है,   और   विदेशज, 
शब्दों  के  अम्बार  भरे    तकनीकी,   वैज्ञानिक  भेषज. 
अवधी, अंगिका,  ब्रजभाषा,   मगही, मैथली, भोजपुरी, 
बज्जिका,  बनारसी,  लखनवी,  राजस्थानी,  जौनपुरी. 
कौन  भाव  है  मन  का  ऐसा, अभिलाषा  या  संस्कृति, 
जिसके  लिए  शब्द  नहीं हो,  उसे  देने को  अभिव्यक्ति. 
कम नहीं किसी  भी भाषा से  सबसे  बढ़ महिमामय है, 
सन्निहित अनेक भाषायें इसमें, संचित कोष अक्षय है. 
बहुजाती,   बहुधर्मी,   बहुभाषी   सबकी   है   कल्याणी, 
होकर भी अनेक,  एक है,  अक्षुण्ण,  अनन्त,  वरदानी. 
कहने  को  है  जन्मतिथि  आज,  संविधान  में  इसकी, 
पर   शाश्वत   सदा  सनातन,  अज्ञात  जन्म है  इसकी. 
नहीं   बेचारी   रही   कभी   यह,   नहीं   कोई   लाचारी, 
कण-कण में है  रची-बसी,  यह  निधि अमूल्य हमारी.
सदा   रहेगी   गरिमामय  यह   रही  है   सदा   चिरंतर,
देख रहा  हूँ   मैं   भविष्य   को,   विश्व   करेगा   वन्दन,
बस एक निवेदन  यही  आज  आधुनिकी  नहीं  बनायें.
जोड़न    देकर    अँग्रेजी    का,    इसको   नहीं   जमायें.
यह स्वछंद है,  अजर-अमर कीर्तिमयी स्वाभिमानी है,
सहज बोध है सरल-सरस, अभिमानी नहीं पर मानी है.
कोटि- कोटि   कंठों  से  होकर,  गूँज  रही  जो  वाणी  है.
वह  प्रिय  भाषा  हिन्दी है,   हिन्दवी है, हिन्दुस्तानी  है.

                                 रचनाकार कवि 
                         श्री विश्वनाथ मिश्र ''पंचानन'' जी 
                         पटना (बिहार)