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Thursday, March 5, 2009

आज आ गया बसन्त का सुबकता मौसम

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //

आज आ गया बसन्त का सुबकता मौसम


कविवर
श्री विश्वनाथ मिश्र जी "पंचानन "
पटना (बिहार) भारत

फिर आ गया गंधों से महकता मौसम
यादों की साँसों में तड़पता मौसम |
रूपों और रंगों से चमकता मौसम
बसन्त का छन - छन बदलता मौसम |
टुकुर - टुकुर झाँक रहा घूँघट से महुआ
बिछ गया डगर - डगर टपकता मौसम |
लग गयी आग है सेमर - निर्गुण्डी में
लाल लाल अंगारों से लहकता मौसम |
रंगीले फूलों को गूँथ - गूँथ वेणी में,
धानी रंग चुनरी से सँवरता मौसम |
फसलों के गोटों से अंग - अंग सजे - सजे,
खेतों में दूर - दूर तक पसरता मौसम |
पूरबी बयार देती है हिचकोले
कभी यहाँ कभी वहाँ मचलता मौसम |
गदराये अलसाये मताये भरमाये
कभी चिपकता कभी छिटकता मौसम |
ऐसे में सब क्यों होठ सिले बैठे हैं ?
शहदीले बन क्यों नहीं चहकता मौसम ?
खौफ है समाया ऐ. के. सैतालीस का
इसलिये खामोश आज सहमता मौसम |
इर्ष्या और भय से चहरे सब सर्दीले,
उस पर पेट खाली है , कसकता मौसम |
अब पहले सा कहाँ सरसता मौसम ?
न उमगता मौसम , न बहकता मौसम |
न ठौर - ठौर भौंरो से लपकता मौसम
न बागों में अब कहीं लचकता मौसम |
आज गुलाब भी पता नहीं देता अपना
सड़ी - लाश सा गमकता मौसम |
आता होगा कभी कलियों को चटकारी दे ,
बसंत ऋतुराज का झमकता मौसम |
आज कहाँ लगता आया तो किधर आया ,
वह टहकता मौसम , वह हुमकता मौसम |
आज भेदभाव के भर गये जहर ऐसे
सभी के पोर - पोर में टभकता मौसम |
हाय यह आदमी बन गया दरिंदा है ,
आज विहँसता कहाँ , सिसकता मौसम ?
आज आ गया बसन्त का सुबकता मौसम |
जय श्री राधे