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Friday, November 21, 2008

चलो चलें उस दूर देश


// श्री जानकीवल्लभो विजयते //  

चलो चलें उस दूर देश



कविवर
श्री विश्वनाथ मिश्र जी "पंचानन "
पटना (बिहार) भारत

चलो चलें उस दूर देश में, इक दुनिया नई बसाने.
वहाँ चलें जहाँ जले न कोई लखकर मधुर-मिलन को,
कोई न छेड़े मन की वीणा, उठती हुई सिहरन को.
कोई रोकने वाला न हो हृदय की धड़कन को
बाधा डाल सके न कोई मिलते दो जीवन को
वहाँ चले जहाँ प्रेम चिरन्त, शाश्वत और अमर हो,
वहाँ चले जहाँ कोई न बन्धन, सुन्दर प्रेमनगर हो.
वहाँ चलें जहाँ प्रेम ही केवल तन-मन-धन सर्वस्व हो,
वहाँ चलें जहाँ प्रेमी दिल में, प्रिय के हित कसमस हो.
वहाँ चलें जहाँ प्रेम के पथ, हो कोई नहीं बहाने.
सदा रहेगा जगमग चन्दा, तारों की बाराती,
कल-कल, कल-कल करती रहेंगी राजहंस की पाँती.
प्यार महल में जला करेगा प्रेम दीप की बाती,
हममें तुम, तुममें हम सिमटे सदा रहेंगे साथी.
वहाँ चले जहाँ कोई न आवे, हम तुम को समझाने.
चलो चलें उस दूर देश में, इक दुनिया नई बसाने.