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Thursday, November 13, 2008

श्री तुलसी हैं उपकारी

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
श्री तुलसी हैं उपकारी

पं. लक्ष्मीकान्त शर्मा ( कौशिक )
तुलसी एक सुपरचित एवं सर्व परिचित वनस्पति है. किसी भी स्थान पर उगने वाली इस वनस्पति का भारतीय धर्म - संस्कृति में उच्च, पवित्र और महिमा पूर्ण स्थान है. जिसकी तुलना सम्भव न हो ऐसी "तुलसी " का नाम उसकी अतिशय उपयोगिता को सूचित करता है. अनेक दन्त कथाओं, व्रत कथाओं, धर्म कथाओं, पुराण कथाओं में तुलसी की विविध गाथाएँ उपलब्ध होती हैं. पद्म पुराण में जालन्धर की पत्नी वृन्दा के रूप में इसकी कथा मिलती है. कलश स्थापन की धार्मिक क्रिया के अवसर पर अष्ट - पूजन में तुलसी गृह का छठा स्थान है. सभी प्रकार की धार्मिक विधि या पूजा में तुलसी अनिवार्य है.
परन्तु तुलसी का दूसरा स्वरूप है : औषधि ! चरक, धन्वन्तरी, सुश्रुत आदि महान वैद्यकशास्त्रियों और समस्त चिकित्साशास्त्रों ने एक औषधि के रूप में तुलसी को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान दिया है. तुलसी पित्त - कफ नाशक, हृदय हितकर, विषहर, वीर्यवर्द्धक एवं स्मृतिवर्द्धक है. अतिसार, अर्श, अश्मरी, अग्निमांद्य, चर्म रोग, कृमि, मुँहासे, दाद, खुजली, दुर्गन्ध, उदर, दन्त, कर्णशूल, मूत्रकृच्छ, उल्टी, श्वासरोग, हिचकी, सर्व प्रकार के ज्वर, मुख - नेत्र रोग, पाण्डुरोग, रक्तपित्त, तृषा, मधुप्रमेह, वातविकार, धनुर्वात, मूर्छा, एलर्जी तथा कई रोगों में भी अत्यन्त ही लाभकारी है. आयुर्वेद में तुलसी के औषधीय गुणों के महात्म्य का ब्यौरेवार वर्णन किया गया है. प्रदूषित वायु के शुद्धीकरण में भी तुलसी का योगदान श्रेष्ठ है. इसीलिए कदाचित् भगवान श्री कृष्ण जी के वृन्दाबन मे तुलसी के पौधों को घने रूप मे लगाया गया होगा. भगवान विष्णु या श्री कृष्ण जी की कोई भी पूजा विधि "तुलसीदल " की उपस्थिति के बिना परिपूर्ण नहीं मानी जाती. इसी प्रकार तुलसीदल के अभाव में प्रसाद नहीं माना जाता.
हमारे यहाँ तुलसी इतना अधिक सुपरिचित और सर्वत्र सुलभ पौधा हो गया है. कि लोग उसे एक साधारण वस्तु ही समझते हैं. हम तुलसी के अमूल्य गुणों को भी भूल गए हैं. और जो रोग उसके उपयोग से किसी भी खर्च के बिना सरलता से मिट सकते हैं. उसके लिए हम विदेशी दवाओं का सेवन करके भारी हानि उठाते हैं.
हमारे जीवन पर तुलसी के अनेक उपकार हैं. अत: तुलसी का सेवन पूर्ण श्रद्धा एवं आदरभाव से होना चाहिए. तुलसी का पौधा आँगन में लगाने से वातावरण शुद्ध रहता है. मच्छर नहीं आते, व्यायाम करते समय श्वसन क्रिया बढ़ जाती है. और प्राणवायु कि अधिक आवश्यकता रहती है. अत: तुलसी के पौधे को पास में रखकर अध्यन करने से भी लाभ होता है. यदि हम अपने घर के आँगन में, पिछवाड़े वाले भाग में, झरोखे (खिड़की ) में या जहाँ नियमित निरन्तर सूर्य का प्रकाश उपलब्ध हो सके ऐसी जगह में तुलसी का एकाध पौधा लगायें तो निश्चय ही हमें निरोगी, दीर्घायु और चिरसौन्दर्य मिलेगा. फ़िर सौन्दर्यवान एवं आयुष्मान बनने के लिए हमें बाह्य प्रसाधनों तथा उपचारों का आश्रय नहीं लेना पड़ेगा.
तुलसी जैसी अपूर्व गुणकारी वनस्पति का निर्माण परमात्मा ने हमारी सुख समृद्धि के लिए ही किया है. यह हम पर ईश्वर की महती कृपा ही तो है.
जय श्री राधे राधे