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Saturday, March 7, 2009

ब्रज की होली व हुरंगा

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //

ब्रज की होली व हुरंगा

कु. आकाँक्षा तिवारी ( शिखा ) 
शिक्षिका
श्री धाम वृन्दाबन - भारत
हमारे लिए होली एक विशेष त्यौहार है | इसे सभी धर्म, राष्ट्र व देश में पूरे हर्ष व उल्लास से मनाया जाता है परन्तु भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलास्थली, क्रीड़ास्थल व तपस्थली ब्रजभूमि में होली का अपना एक विशेष महत्त्व है यहाँ पर होली नहीं बल्कि होरा मनाया जाता है क्यों की यहाँ होली को दो दिन, चार दिन या सात दिन नहीं मनाते अपितु ब्रज में बसन्त पञ्चमी से होली का प्रारम्भ होता है जो फाल्गुन माह के अन्त तक चलता है वैसे तो "सकल भूमि गोपाल की" सारा सन्सार उस परब्रह्म परमेश्वर का है परन्तु ये ब्रज भूमि ऐसी है जो आज भी उस गोपाल का मन्दिर है, जहाँ श्रीराधाकृष्ण अप्रत्यक्ष रूप में आज भी निवास करते हैं | इस बात का प्रमाण ठाकुर के कथन से होता है :-
''ब्रजवासी बल्लभ सदा , मेरे जीवन प्राण |
इन्हें न तनक विसरिहौं, मोहे नन्दबाबा की आन ||''
इसी कारण ब्रज मण्डल की होली सारे सँसार में प्रसिद्ध है | आज भी यहाँ बरसाने से होली का प्रारम्भ होता है | यहाँ की हुरियारिनें नन्द गाँव के हुरियारों को बुला - बुला कर होली व हुरंगे के लिए उसी प्रकार कहती हैं जिस प्रकार श्रीवृषभानु नन्दिनी श्रीकृष्ण जी को होली के लिए पुकारती थी और कहती थी :-
"चलौ आइयो रे श्याम मोरी पलकन पे
चलौ आइयो रे --------------
हाँ रे चलौ आइयो रे, हम्बे चलौ आइयो रे
चलौ----------------"
हुरियारों को बुलाकर वे अपने - अपने घरों में जा कर बैठ जाती हैं | तब वे हुरियारे उन्हें जबरदस्ती घर से निकलने का आग्रह करते हुए कहते हैं की :-
"दरसन दै निकस अटा मैं तै
दरसन दै - २
गोरी निकस अटा भई ठाड़ी
मानो चन्द्र घटा मैं ते
दरसन दै ------- दरसन दै निकस अटा मैं ते -----------"
हुरियारों के विशेष आग्रह पर हुरियारिनें मान जाती है और आकर होरी खेलती हैं | और नाच गाना फाग और रसिया गाये जाते हैं हुरियारे ( पुरुष वर्ग ) और हुरियारिनें ( स्त्री वर्ग ) सब गीतों के माध्यम से अपने अपने मन की बातें कहते हैं और बालक, बृद्ध और नर, नारी सभी अपने इस होली उत्सव को ख़ुशी के साथ मनाते हैं |
होली के अवसर पर हुरियारिनें ठिठोली भी उसी प्रकार से करती हैं जैसे श्रीवृषभानुनन्दनि जी ने श्रीकृष्ण को नारी बनाया था आपस में सखी एक दूसरे से कहती हैं :-
"रसिया को नार बनावौ री -२
गाल गुलाल दृगन में अंजन,
बिन्दी भाल लगावौ री
रसिया --------------"
शेष अगले अंक में !
जय श्री राधे