नव उमंग नव रंग छटाएं नव यौवन में प्रकृति ।
ललित कलित वन बाग मनोहर हर पल दिखता हर्षित ।।
ठंडी ठिठुरन कांपती धरती अब ली है अंगड़ाई ।
नीला अम्बर धरा पीताम्बर प्रेमी मन बहकाई ।।
मंद मंद मदमस्त हवाएं गुन गुन धुप सुहानी ।
ऋतुराज बसंत आगमन मन हो चला मनमानी ।।
नील पीत हरीत बहुरंगी सुषमा चहुँ दिश छायी ।
नव पल्लव ले तरू लताएं मादकता अधिकायी ।।
जूही चम्पा बेली गेन्दा सरसों खेत में भाये ।
तिसी फूल गगन उतरे तल स्वर्ग मही बन जाए।।
कलरव करते मधुर ध्वनि में पंक्षी डाली-डाली ।
तितली छम-छम भौंरें गूंजन बगिया क्यारी-क्यारी ।।
ताल तलैया हंसते पंकज मञ्जरी आम बौराये ।
शुभ शुभ मंगल नित हो नूतन गुलशन गुल महकाये ।।
श्री गोपाल पाठक जी