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Thursday, February 13, 2025

एक झूठ सौ सच पर भारी

आठ वर्षीय गोलू पूर्ण उत्साह के साथ कड़कड़ाती ठंड मे रात दस बजे अपनी मां के साथ इसलिये कतारबद्ध खड़ा था कि सेठ जी कंबल बांटते हुए जेसै ही माँ के हाथ मे देंगे वह तुरंत ही उसे माॅ के हाथो से ले लेगा और जिंदगी मे पहली बार नया कंबल ओढेगा। इसी सुखद कल्पना मे डूब कर वह दो-चार हुआ जा रहा था, लेकिन यह क्या सेठजी उसकी मां को छोड़कर आगे बढ़ गए। गोलू की सहनशीलता जवाब दे गयी, वह माॅ से हाथ छुड़ा कर दौड़ पड़ा सेठ जी की ओर और उनके सामने पहुंच याचना भरे स्वर मे विनती की, सेठ जी! आप मेरी माँ को कम्बल देना भूल गए। उनके बदले मुझे दे दो ना। लेकिन सेठ जी गोलू की बातो को अनसुना कर कार मे बैठ गए। गोलू की ऑखो मे ऑसू आ गये। ऊपर से उसकी मां ने दो चांटे और लगाते हुए फटकारा कि नही चाहिये मुझे कम्बल, किंतु तेरी जिद के कारण यहा इस कड़कड़ाती ठंड मे लाइन मे लगना पड़ा। देख लिया अपनी जिद का नतीजा। इसके साथ ही कमली की ऑखो मे भी ऑसू आ गए शायद तिरस्कार के कारण। इथर रास्ते मे सेठ जी के ड्राईवर ने पूछा क्षमा करे सर!इतना जानना चाहता हू कि आपने सबको कम्बल दिये केवल एक को छोड़ दिया वह बच्चा कितना दुखी था बेचारा? सेठ जी ने कहा कि तू जानता है जिससे हमारी बोलचाल बंद है ये कमली उसके यहा बर्तन मांजती है। कोई घंटे भर बाद किसी ने कमली का दरवाजा खटखटाया, सामने सेठ जी का ड्राईवर हाथो मे कम्बल लिए खड़ा था वो बोला लो ये कम्बल बच्चे के लिए।
कमली कुछ विचार करती, उससे पहले ही गोलू खुशी से चहकता हुआ कम्बल अपने हाथो मे ले लिया । बेटे की खुशी से बढकर कमली के लिए और कुछ भी न था न मान न स्वाभिमान। वह रूंधे गले से केवल इतना ही कह पाई ड्राइवर साहब सेठ जी को मेरा प्रणाम कहना। यह कम्बल मै ठंड से बचने के लिए नही मात्र बेटे की खुशी के लिए ले रही हूं।
ड्राइवर ने कहा ठीक है और अपनी साईकिल पर बैठ कर चला गया ।घर पहुँचते ही ड्राइवर की पत्नी ने सवाल किया, ये क्या खाली हाथ, आज तो सेठ जी आपको यह कम्बल देने वाले थे? ड्राइवर ने कहा कि सेठ जी के पास सारे कम्बल खत्म हो गये थे। एक बच्चे की खुशी की खातिर उसे यह झूठ आज सत्य से भी कही बड़ा नजर आ रहा था।