यहां धंधे बड़े निराले है
संत, बाबाजी, व्यास बना कर
करते गडबड झाले हैं
कोई बेचे व्यास की गद्दी
कोई लगाये सेल है
कहने को वृंदा का वन
वृंदा से नहीं कोई मेल है
बड़े बड़े महलों मैं रहते
यहां व्यास ,संत का खेल है
अब भक्ति यहां आडंबर की
बाबा जी नाच दिखाते है
लाल, पीला, हरा पहन कर
दुनिया को नाच नचाते हैं
पर कहता मैं अपने मन की
ज्यादा दिन का नहीं खेल है
ये काली कमली वाला है
यहां होती सीधे जेल है....
इतने पर भी तुम ना समझे
वृंदावन नर्क बना ड़ाला
कुंज की गलियों को तुमने
V I P गली बना ड़ाला
पर, हानि पर जब धर्म की
अवतार प्रभु का होता है ,
कौरवों की तो बात ही क्या
शिशुपाल का भी वध होता है
राधे राधे, जय यमुना मैया की.....
कोई भी सच्चे संत, बाबा जी, व्यास जी अन्यथा ना लें, ये सिर्फ दुष्टों के विषय मैं भाव हैं।