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Friday, February 23, 2024

बहू_खानदानी

सुबह हो गेलो सासु मां छोड़ अपन खाट
झाड़ू धर ल घर बहाड़ ल, हो हाथ समाठ।

चाय बना द सुतल हिओ बज गेलो हे आठ
तोर हाथ के नास्ता अच्छा देर करब दु चाट।।

जब बजे ईगारह बाल्टी भर द नेहाय के हो बेर।
साड़ी लेके खाड़ा रहिह माई तू बहुत दिलेर।।

भोजन बारह बजे जरूरी तनिक न होबे देर ।
चार तरकारी चोखा चटनी पापड़ कुड़-कुड़ ढेर।।

खाके जयबो सुते बिस्तर अईह बेनी साथ ।
हल्के -हल्के बेनी डोलाके चांप गोड़ दु हाथ ।।

चार बजे तू चाय-बिसकुट आऊ गिलास में पानी।
तत्पर रहिह सेवा में तू हम बहू खानदानी ।।

सुऽन-सुऽन तनिक एक बात हो रात खाय न देरी ।
रात आठ में खाना जरूरी देऽख हाथ में छेड़ी ।।

मच्छरदानी बेड लगाके बड़का गिलास में दूध ।
हौले-हौले चरन चांपीह यही पुण्य बहुत ।।

      - गोपाल पाठक