सुबह हो गेलो सासु मां छोड़ अपन खाट
झाड़ू धर ल घर बहाड़ ल, हो हाथ समाठ।
चाय बना द सुतल हिओ बज गेलो हे आठ
तोर हाथ के नास्ता अच्छा देर करब दु चाट।।
जब बजे ईगारह बाल्टी भर द नेहाय के हो बेर।
साड़ी लेके खाड़ा रहिह माई तू बहुत दिलेर।।
भोजन बारह बजे जरूरी तनिक न होबे देर ।
चार तरकारी चोखा चटनी पापड़ कुड़-कुड़ ढेर।।
खाके जयबो सुते बिस्तर अईह बेनी साथ ।
हल्के -हल्के बेनी डोलाके चांप गोड़ दु हाथ ।।
चार बजे तू चाय-बिसकुट आऊ गिलास में पानी।
तत्पर रहिह सेवा में तू हम बहू खानदानी ।।
सुऽन-सुऽन तनिक एक बात हो रात खाय न देरी ।
रात आठ में खाना जरूरी देऽख हाथ में छेड़ी ।।
मच्छरदानी बेड लगाके बड़का गिलास में दूध ।
हौले-हौले चरन चांपीह यही पुण्य बहुत ।।
- गोपाल पाठक