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Friday, February 16, 2024

श्री महिषासुरमर्दिनि स्तोत्रम

अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते |

गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ||

भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते || १ ||

सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते |

त्रिभुवनपोषिणि शंकरतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते ||

दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणी सिन्धुसुते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||२ ||

अयि जगदम्बमदम्बकदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते |

शिखरिशिरोमणि तुङ्गहिमालय शृंगनिजालय मध्यगते ||

मधुमधुरे मधुकैटभगन्जिनि कैटभभंजिनि रासरते |

 जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ||३ ||

अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्ड गजाधिपते |

रिपु गजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रम शुण्ड मृगाधिपते ||

निजभुज दण्ड निपतित खण्ड विपतित मुंड भटाधिपते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते || ४ ||

अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते |

चतुरविचारधुरीणमहाशिव दूतकृत प्रथमाधिपते ||

दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदूत कृतान्तमते |

 जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते || ५ ||

अयि शरणागत वैरिवधूवर वीरवराभय दायकरे |

त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शूलकरे ||

दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥

अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते

समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।

शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥

धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके |

कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ||

कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥

सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते |

कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ||

धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥

जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते |

झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ||

नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥

अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते |

श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ||

सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥

सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते |

विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ||

शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥

अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते |

त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ||

अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥

कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते |

सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ||

अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले |

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥

करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते

मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते

निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥

कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे

प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे

जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥

विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते

कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते

सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते।

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥

पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे

अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।

तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥

कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्

भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।

तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥

तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननुकूलयते

किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखीसु मुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।

ममतु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुतक्रियते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥

अयि मयि दीन दयालु-तया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे

अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते।

यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते

जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते।।२१।।

।। इति श्री महिषासुरमर्दिनी स्तोत्रम सम्पूर्णम् ।।