पर आज चॉंद का जबाब भी पढ़ लीजिए
हठ कर बैठा चाँद एक दिन
माता से यह बोला-
"सिलवा दो माँ मुझे ऊन का
मोटा एक झिंगोला।"
🌺 *अब चाँद का जवाब सुनिए*...
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हँसकर बोला चाँद, "अरे
माता, तू इतनी भोली।
दुनिया वालों के समान क्या
तेरी मति भी डोली?"
"घटता-बढ़ता कभी नहीं मैं
वैसा ही रहता हूँ।
केवल भ्रमवश दुनिया को
घटता-बढ़ता लगता हूंँ।"
"आधा हिस्सा सदा उजाला,
आधा रहता काला।
इस रहस्य को समझ न पाता
भ्रमवश दुनिया वाला।"
"अपना उजला भाग धरा को
क्रमशः दिखलाता हूँ।
एक्कम दूज तीज से बढ़ता
पूनम तक जाता हूँ।"
"फिर पूनम के बाद प्रकाशित
हिस्सा घटता जाता।
पन्द्रहवां दिन आते आते
पूर्ण लुप्त हो जाता।"
"दिखलाई मैं भले पड़ूँ ना
यात्रा हरदम जारी।
पूनम हो या रात अमावस
चलना ही लाचारी।"
"चलता रहता आसमान में
नहीं दूसरा घर है।
फिक्र नहीं जादू टोने की
सर्दी का बस डर है।"
"दे दे पूनम की ही साइज
का कुर्ता सिलवा कर।
आएगा हर रोज बदन में
इसकी मत चिंता कर।"
"अब तो सर्दी से भी ज्यादा
एक समस्या भारी।
जिसने मेरी इतने दिन की
इज्जत सभी उतारी।"
"कभी अपोलो मुझको रौंदा
लूना कभी सताता।
मेरी कंचन सी काया को
मिट्टी का बतलाता।"
"मेरी कोमल काया को
कहते राकेट वाले
कुछ ऊबड़-खाबड़ जमीन है,
कुछ पहाड़, कुछ नाले।"
"चन्द्रमुखी सुन कौन करेगी
गौरव निज सुषमा पर?
खुश होगी कैसे नारी
ऐसी भद्दी उपमा पर।"
"कौन पसंद करेगा ऐसे
गड्ढों और नालों को?
किसकी नजर लगेगी अब
चंदा से मुख वालों को?"
"चन्द्रयान भेजा भारत ने
भेद और कुछ हरने।
रही सही जो पोल बची थी
उसे उजागर करने।"
"एक सुहाना भ्रम दुनिया का
क्या अब मिट जायेगा?
नन्हा-मुन्ना क्या चंदा की
लोरी सुन पायेगा?"
"अब तो तू ही बतला दे माँ
कैसे लाज बचाऊँ?
ओढ़ अँधेरे की चादर क्या
सागर में छिप जाऊँ?"