|| श्री जानकीवल्लभो विजयते ||
!! श्रीहरितालिका ( तीज ) व्रत विधान !!
भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया को हरितालिका ( तीज, कजरी तीज ) व्रत के नाम से विभूषित किया गया है | इस व्रत का महत्त्व आज से नहीं, अपितु पुरातन समय से ही चला आ रहा है | इसका मुख्य कारण यह है की इस व्रत को विवाह से पहले करने से मनोवाँछित पति की प्राप्ति नि:सन्देह होती है | तथा विवाह के बाद इस व्रत को करने से स्त्रियाँ अखण्ड सौभाग्यवती होती है | तथा सभी प्रकार के सुख एवं ऐश्वर्यों को प्राप्त करती है |
तीज व्रत करने वाली स्त्रियों को तृतीया तिथि के दिन सूर्य उदय से पहले उठ कर भगवान का स्मरण करना चाहिये, फिर शौच, दन्त धावन, स्नान आदि करके शिवालय में या घर के किसी शुद्ध स्थान ( जगह ) जहाँ श्रीशिव पार्वती जी का पूजन करना और कथा सुनना हो वहाँ श्रीशिव पार्वती जी के पूजन के लिए केला, बन्दनवार आदि से सुसज्जित एक छोटा मण्डप बनावें | उसी मण्डप में अपने बन्धु - बान्धवों के साथ बैठ कर और अपने श्रीआचार्य जी ( पुरोहित जी ) के द्वारा संकल्प सहित श्रीहरितालिका व्रत का पूजन और कथा श्रवण ( सुने ) करें |
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