|| श्री जानकीवल्लभो विजयते ||
!! कुशोत्पाटनी अमावस्या !!
भाद्रपद मास कि अमावस्या को कुशोत्पाटनी अमावस्या कहते हैं | इस दिन प्रातः काल पुरुष लोग गंगा, यमुना, नदी, तालाब, कुआ आदि पर स्नान करते हैं | स्नान के बाद किसी पात्र ( लोटा, लुटिया, कमण्डल आदि ) में जल ( पानी ) भर कर, किसी ऐसे स्थान पर जायें, जहाँ कुशा के छुप उपजे हो | ( ये छुप जंगल या खेतों के किनारे पाये जाते हैं ) वहाँ जा कर कुशा के छुप के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख कर के बैठ जाएँ, उसके बाद साथ ले गये जल से अपने हाथ के अँगूठे के माध्यम से अपने सभी पितरों ( गुरु, स्त्री, पुरुष, बच्चे { ससुराल पक्ष सहित, पत्नी के छोटी - बड़ी बहन व बहन के परिवार को छोड़ कर } सभी के नाम से ) को जल दें | जल देने के बाद "ॐ हूँ फट" मन्त्र तीन बार अवश्य बोले | ( नित्य कर्म करने वाले या कराने वाले ब्राह्मण वर्ग हवन, पूजा, ग्रहण काल आदि के लिए उपरोक्त मन्त्र बोलते हुए कुशा छुप को उखाड़ कर अपने घर ला सकते हैं ) मन्त्र बोलने के बाद अपने पितरों को आश्विन मास में होने वाले तिथि श्राद्ध के लिए आमंत्रण करें, अपने घर परिवार, स्वास्थ, रोजी - रुजगार आदि की शुभकामना की प्रार्थना करें | प्रार्थना करने के बाद पात्र का सब जल ( पानी ) उसी जगह पर फैला देना चाहिए | लेकिन ध्यान रखें कि फैला हुआ पानी पैर में ना लगे | और पात्र ले कर वापस अपने घर आ जाना चाहिए | और पात्र को अपने घर की पूजा के जगह पर रख देना चाहिए | घर पहुँच कर या रास्ते में जहाँ पानी मिल जाय, अपने पात्र ( जिससे पितरों को जल दिया है ) को अच्छी तरह से शुद्ध मिटटी से साफ कर के धो लें |
यदि वास्तविक में देखा जाय तो शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है | ऐसे शास्त्रों में भी पितरों के लिए कहा गया है कि पहले पानी फिर आमन्त्रण फिर भोजन | मान लीजिये ! अगर हमने आश्विन कृष्ण पितृ पक्ष में पितरों को भोजन तो करा दिया, लेकिन भादों मास की अमावस्या को जल, आमंत्रण नहीं दिया, तो वो ब्राह्मण भोजन कराना निष्फल चला जाता है | इस लिए विधान के अनुसार पहले भादों मास कि अमावस्या को उपरोक्त विधि के अनुसार जल, आमंत्रण करें, फिर आश्विन पितृ पक्ष में पितरों के तिथि अनुसार ब्रह्मण भोजन करावें | जिससे परिवार में पितरों कि पूर्ण कृपा बनी रहे |
जय श्री राधे !