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Thursday, July 9, 2009

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //

युवा वर्ग और मानवता

श्री मती अनुराधा शर्मा ( कौशिक )
श्री धाम वृन्दाबन, भारत

मानव की मानव के प्रति संवेदना, करुणा और दया ही ' मानवता ' कहलाती है | जगत में अन्य सभी प्राणियों के मुकाबले मानव में ही बुद्धि - विवेक का तत्व निहित है | शेष अन्य जीव पीड़ा, करुणा और प्यार की अनुभूति तो अभिव्यक्त कर पाते हैं लेकिन बुद्धि - विवेक के अभाव में अपने समाज के दूरगामी हितों का चिंतन नहीं सकते | उनके सम्मुख समाज के कल्याण की कोई योजना नहीं होती | दूसरी ओर मनुष्य ने अपने विवेक - चातुर्य को संकुचित कर सीमार्न्तगत ला खडा किया है | अब मनुष्य अपनी प्रजातियों से ऊपर उठकर मात्र ' मानव ' जाति के रूप में पहचाना जाता है | भाषा संस्कार, वेशभूषाओं में अन्तर होते हुए भी समूचे विश्व में सामंजस्य की अनुभूति उपलब्ध हुई है | यह कहा जा सकता है कि भौतिक प्रगति से जहाँ विश्व सिकुडा है, वही मानवता का दायरा और ज्यादा विस्तृत हुआ है |
मानवता मनुष्य का ऐसा सद्चारित्रिक संस्कार है जिससे वह दूसरों के दुखों - कष्टों को अपने साथ जोड़ लेता है | ये संस्कार मानव समाज के सभी वर्ग में अन्तर्प्रेरित होते है | युवा वर्ग समाज का एक ऐसा वर्ग है जो वयः संधि के काल में अपरिपक्वता और अनुभवहीनता के कारण समाज में धीरे - धीरे अपना स्थान बना पाता है | इस काल में उसके विचारों को न तो सर्वमान्यता मिल पाती है और न ही प्रौढों की तरह समाज में वह सम्मान का पात्र ही बन पाता है | स्वावलम्बन के अभाव में वह अर्थ जुटाने में भी विवश रहता है क्योकि उसका मानस बेदाग होता है और उसके अन्तः स्थल पर स्वार्थ की छीटें अभी पड़ी नहीं होती, इसलिए वह संवेदनाओं से अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित होता है, वह दुखिओं और जरुरतमंदों के लिए कुछ करने को उद्यत रहता है | वह इस दिशा में उत्साही तो होता है, लेकिन व्यावहारिकता के धरातल पर अपनी अनुभवहीनता के कारण त्रिशंकु की स्थिति में रह जाता है |
यदि युवा पीढी को सही दिशा दी जाये तो मानवता के कल्याण की दिशा में इस वर्ग का सक्रिय योगदान मिल सकता है | विद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में आयोजित होने वाले श्रमदान साक्षरता, स्वच्छता, पर्यावण स्वास्थ्य शिक्षा आदि शिविरों में युवा वर्ग को संलिप्त करके मानवता के क्षेत्र में इनका सहयोग लिया जा सकता है | मानवता की सेवा का दायरा विस्तृत है | युवा वर्ग की शक्ति भी अपरिमित है | आवश्यकता है समझ बूझ और सामंजस्य की |

जय श्री राधे