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Wednesday, July 8, 2009

दीनबन्धु

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //

दीनबन्धु

कु० नूपुर गौतम
श्री धाम वृन्दाबन, भारत

कंचन विहीन हो के, अकिंचन बनें हैं हम |
लेकिन तुम स्वयं में कमलेश कहलाते हो ||

भोगते बिलास सर्व सृष्टि के सभी सुख |
किन्तु, निर्धनों पै दया नेक भी न लाते हो ||

ह्रदय में विठाते, सुहृदय में पवित्र प्रेम |
फूल जो विछाते उन्हें धूल में मिलाते हो ||

कैसी ये बन्धुता तुम्हारी है बताओ नाथ |
दीन बन्धु होके, दीन दुखी को सताते हो ||

जय श्री राधे