// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
दीनबन्धु
कु० नूपुर गौतम
श्री धाम वृन्दाबन, भारत
कंचन विहीन हो के, अकिंचन बनें हैं हम |
लेकिन तुम स्वयं में कमलेश कहलाते हो ||
भोगते बिलास सर्व सृष्टि के सभी सुख |
किन्तु, निर्धनों पै दया नेक भी न लाते हो ||
ह्रदय में विठाते, सुहृदय में पवित्र प्रेम |
फूल जो विछाते उन्हें धूल में मिलाते हो ||
कैसी ये बन्धुता तुम्हारी है बताओ नाथ |
दीन बन्धु होके, दीन दुखी को सताते हो ||
जय श्री राधे