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Monday, May 25, 2009

अपराध से अध्यात्म

//श्री जानकीवल्लभो विजयते//

अपराध से अध्यात्म

किशन शर्मा ( शिक्षक )
श्रीधाम वृन्दाबन - भारत

मनुष्य प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना है | प्रकृति ने अपने सम्पूर्ण सतोप्रधान गुणों से संपन्न कर मानव रचना की | काल चक्र के अनुसार परिवर्तन संसार का नियम रहा है | उसी परिवर्तन की प्रक्रिया मे मानव समय के साथ बदलता गया | आज उसकी इस बदलने की प्रक्रिया के कारण ही वह तमोप्रधान संस्कारों की ओर उन्मुख हो गया है | जिसके फलस्वरूप जीवन मे दुःख, अशांति का अहसास होने लगा | तब मानव ने अपने मूल गुणों - सुख, शांति, प्रेम, आनंद आदि को तलाशना शुरू किया कि शायद किसी वस्तु के माध्यम से उपलब्ध हो जाये या किन्ही सम्बन्धों द्वारा शुख - शांति की चाहना रखी किन्तु अप्राप्ति ही दिखाई दी | भगवान के आगे प्रार्थना - याचना की, किन्तु यथार्थ परिचय व यथार्थ विधि न होने के कारण निराशा ही हाथ लगी | दूसरों पर दोषारोपण कि प्रवृति होने के कारण स्वयं की दुःख - अशान्ति का कारण अन्य व्यक्तियों को मान लिया | परिणामस्वरूप उनमे हिंसक प्रवृत्तियां जाग्रत होने लगी और इन्सान एक - दूसरे को मरने - मारने व खून पीने को तैयार हो गया | हिंसात्मक प्रवृति को अपनाकर स्वयं के सुख - चैन के लिए जिसकी लाठी उसकी भैंस इस विधान को अपनाया |
वास्तव मे मूल रूप मे कोई भी व्यक्ति चोर, अपराधी व आतंकी नहीं होता है | समाज परिस्थितियां संगदोष व महत्वाकाँक्षा के वश होकर जब वह हिंसक वृत्तियों को अपनाता है तब भी उसके मूल गुण जाग्रत होकर पश्चाताप की अग्नि का रूप ले लेते है | बार - बार किये गए अपराध बुरे संस्कार का रूप ले लेते है, जिससे पश्चाताप खत्म होकर अपराध करना उसकी आदत मे शामिल हो जाता है | किन्तु "जैसा बोयेंगे वैसा काटेंगे", "जैसा कर्म वैसा फल" की उक्ति अनुसार कोई भी कर्म के फल से छूट नहीं सकता | देर - सबेर हर एक कर्म का फल भोगना ही है | कर्म सिद्धांत के अनुसार जब कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है, तो उसे सुधार कि भावना से जेल भेज दिया जाता है | आज उसका परिणाम यह हो रहा है कि वह सुधरने के बजाय और ही खूंखार बनकर छोटे चोर के बजाय बड़ा चोर बनकर बदले की भावना से भरपूर होकर जेल से बाहर निकलता है ऐसी विषम परिस्थितियों मे अध्यात्म का बोध जरूरी है | हर व्यक्ति के परिवर्तन का एक समय होता है | जीवन मे किये हुए कृत्यों के सुधार करने का एक सुअवसर क्यों न सभी को दिया जाये | किरण बेदी ने भी इन्हीं शुभ भावो को लेकर कैदियों के जीवन एक नया मोड़ देने के लिए तिहाड़ जेल में राजयोग केन्र्द की शुरुआत की | जिसका परिणाम यह हुआ कि कैदियों के मन की हिंसक वृतियां, बदले की भावना बदल कर जीवन में नवीनता धारण करने व स्वयं को परिवर्तित करने की आशा पैदा हुई है |
जय श्री राधे