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Tuesday, May 26, 2009

संघर्ष ( कर्म )

//श्री जानकीवल्लभो विजयते//

संघर्ष ( कर्म )
कु० आकाँक्षा तिवारी ( शिक्षिका )
श्रीधाम वृन्दाबन - भारत

संघर्ष क्या है ? संघर्ष जीवन का ही नाम है, जन्म से मृत्यु तक हर - पल एक नया संघर्ष करना पड़ता है | जब जन्म होता है तब बच्चे को प्राणवायु लेने में खुद ही संघर्ष करना पड़ता है | उसके साथ ही खाने - पिने, चलने, उठने, बैठने, सोने, जागने आदि सभी क्रियाओं को करने पर संघर्ष ही करना पड़ता है, बिना संघर्ष के कोई कार्य सम्भव नहीं हो सकता ! जो प्राणी इस संघर्ष में सफल होता है, वही अपनी मंजिल अर्थात् मुक्ति को प्राप्त करता है परन्तु जो व्यक्ति संघर्ष को मानता ही नहीं तो उससे पूछा जाये के वह अपने सरे कार्य किस प्रकार करता है ? तो उसके पास शायद ही कोई जबाब होगा | क्योंकि यह तो सम्भव ही नहीं है, कि किसी कार्य को करने पर संघर्ष ना करना पड़े ? संघर्ष किसी पीडा, रोग या व्याधि को नहीं कहा जाता है | जिस प्रकार मनुष्यों की अपनी अलग - अलग पहचान उनके शारीर, गुण और रहन - सहन से उसी प्रकार से अपने द्वारा किये गये प्रत्येक कर्म में लगने वाले बल - बुद्वि व पौरुष को हम संघर्ष कह सकते है | कुछ लोगों के मतानुसार संघर्ष सभी को करना पड़ता है और कुछ लोगों के अनुसार किसी को नहीं | लेकिन हमारे विचार से जब भगवान राम ने स्वयं अपने जीवन में अनेकों कठिनाइयों का सामना किया किया था, उन्हें भी उन सभी कठिनाइयों से छुटकारा पाने के लिए संघर्ष अर्थात् कर्म करना पड़ा था, तो मानव भी तो उसी विधाता के हाथ की एक कठपुतली है वह भी तो संघर्ष करेगा | तभी तो आगे बढ़ पायेगा कभी भी संघर्ष करने में पीछे नहीं हटना चाहिए हमें इसी के माध्यम से ज्ञान और ज्ञान के माध्यम से भक्ति तथा भक्ति के माध्यम से भगवद् प्राप्ति अर्थात् मुक्ति प्राप्त होगी | क्योकि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में स्वयं ही कहा है कि '' हे पार्थ ! कर्म करो फल की इच्छा मत करो, कर्म करना मनुष्य का दायित्व है तो इसी के साथ फल देना मेरा दायित्व है '' जो जैसा कर्म करता जाता है, उसी अनुसार फल भी प्राप्त करता है तो प्रत्येक जीवात्मा को यह ध्यान रखना चाहिए कि जैसे आत्मा के बिना शारीर का कोई महत्व नहीं उसी प्रकार संघर्ष के बिना जीवन का कोई महत्व नहीं | तो मेरें अपनों संघर्ष करते चलो परन्तु ऐसा करो कि उस ब्रह्म की नजर में आ सको और अपने जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति कर सको तब तो आपको मानव रूप धारण करना सफल हो सकेगा | किसी प्रकार के संघर्ष से घबराहट ना हो इसलिए :-
'' संघर्ष ( कर्म ) करते चलो, नाम जपते चलो | नाम जपते चलो, नाम जपते चलो || '' 
हे जीवात्मा :- '' खुदी को कर बुलन्द इतना कि खुदा वन्दे से खुद पूछे :- कि वन्दे तेरी रजा कि हैं '' ?
'' गिरते हैं एहसवार मैदान ए जंग में | वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले '' ||
जय श्री राधे