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Monday, May 25, 2009

जीवन एक झूठ
जीवन क्या है ? जीवन एक झूठ है, मनुष्य जिन्दगी के इस झूठ में बहुत खुश रहता है, परन्तु वह ये नहीं समझता कि जीवन क्या है ? जीवन चार दिन कि जिन्दगी है, उसके बाद सिर्फ मृत्यु | जीवन मिलते ही मनुष्य व्यर्थ कि परेशानियों का शिकार होता है | परन्तु जीवन को तरीके से जीना एक कला है | मनुष्य को उस कला को अंगीकार करना चाहिए | जब मनुष्य जन्म लता है, तो वह कई बन्धनों मे बंध जाता है | जन्म होने से पहले जब मनुष्य गर्भ में होता है तो वह गर्भ से ही सीधा ईश्वर से सम्पर्क रखता है, वह ईश्वर से कहता है कि हे प्रभु मुझे इस नर्क से निकालो, मैं इस नर्क से निकलकर पृथ्वी लोक में जाकर सिर्फ आपका ही गुडगान करूंगा और सब पृथ्वी वासियों को भी आपकी भक्ति करने कि प्रेरणा दूंगा, परन्तु मुझे इस नर्क से निकालो | मनुष्य गर्भ मे भी प्रभु का ही नाम लेता है और ध्यान साधना करता है | एक-एक पल राम का नाम लेता है परन्तु जब वह जन्म के बाद पृथ्वी पर आता है, तो वह ईश्वर से किये हुए सारे वचन और सारे वादों को तोड़ देता है | ईश्वर के प्रति उसकी जो श्रद्धा, जो प्रेम होता है वह वो सब भूल जाता है और जैसे-जैसे वो बड़ा होता है, वैसे-वैसे वो ईश्वर को भूलता जाता है | वह बड़ा होकर यह जानता है कि ईश्वर है परन्तु वह विस्वाश नहीं करता, उसका मन एक सर्कस के नत की तरह होता है, जो कि रस्सी पर चलते समय डगमगाता है, वैसे ही मनुष्य का मन भी डगमगाता है | जीवन झूठ के साथ-साथ एक सुनहरा सत्य भी है | क्योकि श्री राम ने भी पृथ्वी लोक पर साधारण मनुष्य की भांति जीवन व्यतीत किया | श्री राम के जीवन मे कितने संघर्ष आये और सब संघर्षों का श्री राम ने एक साधारण मनुष्य की भांति ही सामना किया | श्री विष्णु ने अपने राम अवतार के जीवन से मनुष्य को जीवन को जीने का एक उचित मार्ग दिखाया है परन्तु मनुष्य उन सब बांतो को ध्यान मे नही रखता बल्कि वह अपने अमूल्य जीवन को मृत्यु के भय से बिना किसी अच्छे कर्म किये ही व्यतीत कर देता है | मनुष्य को अपने जीवन मे अच्छे कर्म करने चाहिए और अपना जीवन दूसरों के लिए जीना चाहिए, जिससे उसका जीवन एक सफल जीवन बन सके | मनुष्य को दूसरों के दुःख मे दुखी और दूसरों के सुख मे ही अपना सुख दूदना चाहिए | इसलिए मनुष्य को अपने जीवन मे ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे उसे अपना जीवन एक झूठ नहीं बल्कि एक अमर सत्य लगे जीवन को एक अमर सत्य बनाओ | यही सच्चे मनुष्य का जीवन है |

दिलीप सिंह ( निज्जू)
वृन्दाबन