//श्री जानकीवल्लभो विजयते//
मजीरा अपनायें सर्व सुख पायें !!
किशन शर्मा ( शिक्षक )
श्रीधाम वृन्दाबन - भारत
हमारा देश भारत वर्ष दूसरों के लिए प्रेरणा का केन्द्र रहा है | लेकिन कतिपय अनेकों कारणों के द्वारा आज देश के सभी प्रान्तों के अधिकाँश घरों में अशांति, निराशा, कटुता तथा आपस में एकता व प्रेम की कमी दिखायी दे रही है | प्राचीन समय में गुरु आश्रमों में, गुरुकुलों में तथा प्रत्येक घर में हमारी संस्कृति के अनुरूप आचरण करते हुए एक वाद्य यन्त्र को ह्रदय से अपनाकर सभी सुख व शांति की अनुभूति करते थे | लेकिन आज के युग में चकाचोंध व भागम भाग में पाश्चात्य वाद्य यंत्रो में सुख - शांति को खोजते है | जब कि इससे ध्वनि, सांस्कृति एवं सामाजिक और मानसिक प्रदूषण तीव्र गति से बढा हैं, जिसका प्रभाव नैतिक पतन के रूप में दीख रहा है | अतः आज भी वह वाद्य यंत्र जो हमें सुकून देता था, वही जीवन में अपनाना अत्यन्त आवश्यक है | घरों में से जब से वह ''मजीरा'' वाद्य यंत्र गायव हुआ चैन जाता रहा, गुरुकुलों, आश्रमों से भी ''मजीरा'' गायव हुआ तो व्यभिचार पनपा व दुखों का आगमन हुआ इस मजीरा की खासियत है, की इसे इसका नाम लेकर बजाया जाये तो आप महसूस करेंगे कि तीसरी पुनरावृत्ति में ही आप ''मजीरा'' की जगह परमपिता परमेश्वर का नाम ''रामजी '' को अनायास ही भावः विभोर होकर गा रहे हैं | और फिर एक परमानन्द का अनुभव कर रहे हैं | विश्वास नहीं तो कर के देख लें यथा --- मजीरा मजीराम जीरामजीरा
अर्थात रामजी, रामजी, रामजी, रामजी, अतः आप सभी से आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है | कि इसे अवश्य अपनायेंगें और सर्वसुख पायेंगे |
जय श्री राधे