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Saturday, May 30, 2009

विचार मन्थन


// श्री जानकीवल्लभो विजयते //

श्री गंगा दशहरा

( विचार मन्थन )

पं. लक्ष्मीकांत शर्मा (कौशिक)
श्री धाम वृन्दाबन, भारत

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को हम सभी गंगा दशमी अर्थात् गंगा दशहरा के रूप में जानते और मानते हैं | लाखों श्रद्धालु, भक्त अपनी भावनानुसार माँ गंगा के दर्शन और आचमन, स्नान तथा आरती करके पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं | जिसका मुख्य केंद्र हरिद्वार हरिकीपौंडी होता है | इससे करोंडो भक्तों की आस्था जुडी हुई है | अधिकांश जनों को राजा सगर के साठ हजार पुत्र और परोपकार व मुक्ति की भावना के प्रतीक भगीरथ की तपस्या, माँ गंगा का ब्रह्मलोक से भूलोक पर आना, भोलेनाथ के द्वारा वेग को धारण करना और फिर जटाओं में से निकलकर धराधाम को पावन करते हुए जीवों की मुक्ति के साथ-साथ हरियाली, सम्पन्नता व प्रसन्नता के लिए धरा को सिंचित करते हुए समुद्र में लीन होना आदि की विस्तृत जानकारी है |
हमारा भारत वर्ष संस्कृति प्रधान देश है | यहाँ पशु, पक्षी, पेड़, पौधे, पर्वत और नदियों को भी पूजा जाता है | गंगा हमारे लिए सिर्फ एक नदी ही नही है | हमारे संस्कृतिवान समाज में इसे माता का उच्च स्थान प्राप्त है | जिस प्रकार 'माँ' अपने बच्चों का पालन-पोषण करती है | उन्हे वात्सल्यता प्रदान करती है | ठीक उसी प्रकार से ''माँ गंगा'' भी चारों तरफ हरियाली प्रदान करते हुए सभी का सामान रूप से पुत्रवत पोषण करते हुए वात्सल्यता प्रदान करती है |ठीक उसी प्रकार से ''माँ गंगा'' भी चारों तरफ हरियाली प्रदान करते हुए सभी का समान रूप से पुत्रवत पोषण करते हुए वात्सल्यता प्रदान करती है | इसके लिए सभी को कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिए, और अपना कर्तव्य व धर्म मान कर ''माँ गंगा'' की सेवा तन- मन - धन से करनी चाहिए |
परन्तु आज के औधोगिक विकास तथा प्रकृति के दोहन के कारण पवित्र गंगा नदी प्रदूषित हो रही है | अरबों रुपये इस पर खर्च हो रहे हैं | इसका शुद्धीकरण तभी संभव है, जब हम सभी चाहे वह नेता, अभिनेता, उद्योगपति, अधिकारी, कर्मचारी, नीति निर्माता या समाज और धर्म के कथिक ठेकेदार हों या साधारण आम भारतीय सभी को मन, वचन और कर्म से संकल्प लेकर पूर्ण सत्यता व निष्ठां के साथ सरकार द्वारा जारी कार्यों को क्रियान्वित करना व करवाना होगा | तथा प्रत्येक को अपने स्तर से भी प्रदूषण मुक्ति के उपाय करने होंगे | नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब आने बाली पीढियाँ इसे मात्र एक कहानी के रूप में ही जान पाएँगी |
अतः वास्तव में यदि हम अपने को भारतीय कहते हैं | और गंगा को ''माँ गंगा'' मानते है तो हम प्रत्येक को तन, मन, धन, और मन, वचन तथा कर्म से माँ की सेवा को आगे आना होगा और सेवा करके अपने आप को सौभाग्यशाली समझना होगा | तभी हम वास्तव में गंगा माता द्वारा प्रदान वात्सल्य प्रेम के प्रति कृतज्ञता प्रकट कर सकेंगे | और तभी हमारा जीवन सार्थक होगा |
'' जय श्री गंगा माँ ''

जय श्री राधे