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Wednesday, May 27, 2009

चरित्र निर्माण

//श्री जानकीवल्लभो विजयते//
चरित्र निर्माण

कृष्ण कान्त ( किशन ) 
शिक्षक
श्रीधाम वृन्दाबन - भारत

निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें,
स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें | 


माना अगम अगाध सिन्धु है संघर्षों का पार नहीं है, 
किन्तु डूबना मंझधारों में साहस को स्वीकार नहीं है |
जटिल समस्या सुलझाने को नूतन अनुसन्धान न भूले,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूले ||


शील विनय आदर्श शिष्टता तार बिना झंकार नहीं है,
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतिक आधार नहीं है |
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में संस्कृति का सम्मान न भूले,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ||


आविष्कारों की कृतियों में यदि मानव का प्यार नहीं है,
सृजनहीन विज्ञानं व्यर्थ है प्राणी का उपकार नहीं है |
भौतिकता के उत्थानों में जीवन का उत्थान न भूले, 
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ||


जात - पाँति और धर्म भेद में मानव का कल्याण नहीं है,
ऊँच - नीच और गोरा - काला मानव की पहिचान नहीं है | 
मानव - मानव अलग नहीं है ईश्वर की हम देन न भूलें,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें || 


अर्थ जगत के इस चक्कर में जीवन कोई सार नहीं है,
राग - रंग और द्वेष भावः में प्रगति का आधार नहीं है | 
चमक - दमक की इस दुनियाँ में हम अपना ईमान न भूलें,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ||  
जय श्री राधे