//श्री जानकीवल्लभो विजयते//
चरित्र निर्माण
कृष्ण कान्त ( किशन )
शिक्षक
श्रीधाम वृन्दाबन - भारत
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें,
स्वार्थ साधना की आँधी में वसुधा का कल्याण न भूलें |
माना अगम अगाध सिन्धु है संघर्षों का पार नहीं है,
किन्तु डूबना मंझधारों में साहस को स्वीकार नहीं है |
जटिल समस्या सुलझाने को नूतन अनुसन्धान न भूले,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूले ||
शील विनय आदर्श शिष्टता तार बिना झंकार नहीं है,
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी यदि नैतिक आधार नहीं है |
कीर्ति कौमुदी की गरिमा में संस्कृति का सम्मान न भूले,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ||
आविष्कारों की कृतियों में यदि मानव का प्यार नहीं है,
सृजनहीन विज्ञानं व्यर्थ है प्राणी का उपकार नहीं है |
भौतिकता के उत्थानों में जीवन का उत्थान न भूले,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ||
जात - पाँति और धर्म भेद में मानव का कल्याण नहीं है,
ऊँच - नीच और गोरा - काला मानव की पहिचान नहीं है |
मानव - मानव अलग नहीं है ईश्वर की हम देन न भूलें,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ||
अर्थ जगत के इस चक्कर में जीवन कोई सार नहीं है,
राग - रंग और द्वेष भावः में प्रगति का आधार नहीं है |
चमक - दमक की इस दुनियाँ में हम अपना ईमान न भूलें,
निर्माणों के पावन युग में हम चरित्र निर्माण न भूलें ||
जय श्री राधे