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Thursday, May 28, 2009

मृत्यु एक कड़वा सत्य

//श्री जानकीवल्लभो विजयते//

मृत्यु एक कड़वा सत्य

दिलीप सिंह ( निज्जू )
शिक्षक
श्रीधाम वृन्दाबन - भारत

मृत्यु क्या है ?
मृत्यु जिन्दगी का एक कड़वा सत्य है, परन्तु मनुष्य इसी सत्य को झूठ मानता है, मनुष्य समझता है कि उसे कभी - भी मृत्यु नहीं आ सकती, परन्तु जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है | इस प्रथ्वी पर जो आया है, उसे तो जाना ही है | मृत्यु - मृत्यु नहीं बल्कि एक सुन्दर उत्सव और सुनहरा सत्य है | इन्सान इस सत्य को क्यों झुठलाता है, जवकि इन्सान का सिर्फ शरीर मरता है, न कि उसकी आत्मा, आत्मा कभी - भी नहीं मरती | आत्मा - आत्मा नहीं है, बल्कि परमपिता परमात्मा का अंश ही है, जो कि परमात्मा में जाकर विलीन हो जाती है | आत्मा एक मनुष्य की भाँति है, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र छोड़कर नये वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा भी एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है | आत्मा कभी - भी मैली नहीं होती, जैसे कि मनुष्य के वस्त्र मैले होते है, वैसे आत्मा चाहे जिसके भी शरीर में प्रवेश कर ले, चाहे वो इन्सान हो, पशु हो या पक्षी हो | आत्मा एक गंगा जल, गीता, कुरान, गुरु ग्रंथ साहिब और बाईबल की तरह पवित्र है | आत्मा न पैदा होती है, और न ही मर सकती है, आत्मा एक परछाई की भाँति होती है | जैसे परछाई को कोई काट नहीं सकता, परछाई को कोई जला नहीं सकता और नाही कोई पानी में गला सकता है, वैसे ही आत्मा न काटी जा सकती है, और नाही जल सकती है, और नाही पानी गला सकता है | आत्मा अमर है,
जब श्रीराम प्रथ्वी लोक पर आये तो प्रथ्वी लोक पर श्रीराम ने अपने जीवन से प्रथ्वी वासियों को मृत्यु का एक सत्य अपनाना बतलाया है | श्रीराम ने अपने जीवन में सुख - दुःख से संघर्ष करने की प्रेरणा दी है, श्रीराम ने भी मृत्यु के सत्य को अपनाया है | जो कि परमपिता परमेश्वर विष्णु के अवतार है | श्रीराम ने प्रथ्वी लोक के सारे नियमों का वेदों और पुराणों के अनुसार पालन किया है | श्रीराम सम्पूर्ण आवश्यक कार्य करने के बाद बैकुण्ठ धाम चले गये, इसलिए मनुष्य को मृत्यु से भय नहीं मानना चाहिए बल्कि मृत्यु को एक सुन्दर - सत्य मानकर अपनाना चाहिए, मृत्यु - मृत्यु नहीं बल्कि ईश्वर से मिलने का एक सुनहरा और सच्चा मार्ग है, इसलिए मृत्यु के सत्य को ईश्वर की इच्छा अर्थात ईश्वर की आज्ञा मानकर अपनाना चाहिए |

मृत्यु एक अटल सत्य है |
जय श्री राधे