// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
गणगौर पूजन
श्री मती अनुराधा कौशिक
श्री धाम वृन्दाबन - भारत
"भारतीय जना धन्या, धन्या भारत संस्कृति"
हमारा भारतवर्ष वास्तव में दूसरों के लिये प्रेरणा और एक पहेली बना हुआ है | भारतवर्ष की सदभावना व प्रेम के अटूट बंधन की जड़ें बहुत ही गहरी है | और भारतवासी चाहे वह स्त्री, पुरुष या फिर बच्चे क्यों न हो उपरोक्त को तरोताजा रखने के लिये किसी न किसी रूप में अनेक उत्सव व त्यौहारों के द्वारा उसे सींचते रहते हैं | इसी क्रम में चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की तृतीय तिथि अर्थात नव संवत्सर के प्रारम्भ में ही माँ शक्ति और श्री मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम जी के जन्मोत्सव के साथ यह गणगौर ( गौरी तीज ) सधवा ( सुहागिन ) स्त्रियाँ बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाकर सुहाग की मंगल कामना करती हैं
इस दिन घरों में मातृ शक्ति प्रात: काल से ही शुद्धता व हर्ष के साथ पक्का भोजन बनाकर एक विशेष व्यँजन जिसको गुना कहते हैं | यह मैदा को गूँथकर, रोटी की तरह बेलकर, चाकू से एक से दो इंच की चौड़ाई में और रोटी की लम्बाई में खड़ा काट लेते हैं | तथा उसके बाद कम से कम चार - चार इंच के पीस ( टुकड़े ) लम्बाई में करते हैं | फिर तीन उगलियों व अँगूठे के सहारे से उसे गोल आकृति करके दोनों सिरों को आपस में चिपका देते हैं | कढ़ाई में शुद्ध घी में सेंककर इन्हें चीनी की चासनी में डालकर निकाल लेते हैं | ऐसे ही बेसन में नमक मिर्च डालकर बनाते हैं | इन्हें चासनी में नहीं पकाते |
शाम को मिट्टी के गौरा पार्वती बनाकर वस्त्र पहना कर पट्टे पर बिठाते हैं | फिर गणगौर का पूजन जिसमें दूर्वा घास तथा सुहाग का सामान रखकर, सोलह श्रंगार स्वयं करके श्रीगौरा जी का भी श्रंगार करती हैं | और पूजन करती हैं तथा कहानी सुनकर गुना के साथ भोजन व अन्य सामग्री को मन्सती हैं | जिसे सास, जेठानी अथवा ननद को देती हैं | मंगल कामना करती हैं और मंगल गीत भी गाती हैं १६ अथवा ३२ गुना माली को भी दिये जाते हैं | परिवार में पति सहित सभी बड़ों को चरण स्पर्श करती हैं और सभी से आशीर्वाद ग्रहण करती हैं | घर की वालिकायें लड़की लड़कों के वस्त्र पहन कर गणगौर के गीत गाते हुए किसी कुँए अथवा नदी अथवा बगीचे में सिरा आते हैं ( रख आते हैं ) वास्तव में इससे सदभाव व प्रेम का बन्धन परिवार में और अटूट हो जाता है |
गणगौर पूजन का प्रमाण इतिहास में भी मिलता है | जगतजननी माँ सीता जी ने तथा लक्ष्मी स्वरूप श्री रुक्मणी जी ने भी यह पूजन किया था | सुहागिने श्रीशिव पार्वती की कहानी सुनती व सुनाती हैं | राजस्थान में तो गणगौर पूजन बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं | और एक विशेष बात यह है कि राजस्थान में इस पूजन को अविवाहित ( क्वारी ) वालिकायें भी करती हैं | यह अदभुत संस्कृति हमारी अमूल्य धरोहर है हमें इसे जीवन्त रखना चाहिए |
जय श्री राधे