// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
नव संवत्सर
पं. लक्ष्मीकान्त शर्मा
( कौशिक )
श्री धाम वृन्दाबन - भारत
सनातन धर्म मे हिन्दू नववर्ष का शुभारम्भ चैत्र माह की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होकर चैत्र कृष्ण अमावस्या तिथि तक का होता है | भारतीय ज्योतिष में सूर्योदय से दिन प्रारम्भ होता है | और जिसका दिन होता है उसी की रात भी होती है | नये संवत् के प्रारम्भ होने पर अपने - अपने घरों में धर्मध्वज की स्थापना करनी चाहिये | इसके बाद किसी आचार्य जी के द्वारा घर मे कुछ पूजा पाठ करवानी चाहिये | क्यों की नव संवत् के साथ - साथ चैत्र बसन्तीय नवरात्र भी प्रारम्भ हो जाती है | जो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी हो कर दशमी को हवन आदि कर्म होकर पूर्ण हो जाता है | इस अवसर पर श्री माँ दुर्गा के नव रूपों की पूजा के साथ - साथ श्रीवैकुण्ठनाथ श्रीमर्यादा पुरषोत्तम श्रीरामचन्द्र जी महाराज जी के जन्मोत्सव की पूजा व्रत आदि की जाती है | अष्टमी को कन्या पूजन की जाती है | नव संवत् प्रारम्भ होने पर किसी आचार्य जी के द्वारा नये साल के राजा, मंत्री आदि के फल का श्रवण करना चाहिये | ब्राह्मण, गाय की पूजन करके उचित वस्त्र आदि दान करना चाहिये | नव संवत् प्रारम्भ होने पर नीम की कोमल नवीन पत्तियों को काली मिर्च के साथ मिला कर प्रात: काल खाने से सर्व रोग का नाश होता है | नव संवत् प्रारम्भ होने पर अपने पूर्वजों के नाम से गंगा स्नान साथ में ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिये | जिससे वर्ष भर पूर्वजों की कृपा बनी रहे | नव वर्ष मे पूर्वजों के नाम से गंगा स्नान करने से वर्ष भर पितृ दोष नहीं सताता | और पूर्वजों की कृपा बनी रहती है | नव संवत् पर दूध में सावत चावल पका कर शक्कर, केशर, छोटी इलायची मेवा आदि डालकर, बनाकर श्रीभगवान जी को ( अपने - अपने ईष्ट को ) भोग लगा कर अवश्य पाना ( खाना ) चाइये | इससे शरीर मे पुष्टता बनी रहती है | नववर्ष सभी भाई - बहनों के लिए शुभ फलदायी हो, यही श्रीजागताधार जी से प्रार्थना है |
जय श्री राधे