// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
|| ॐ नमः शिवाय ||
महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष !
महाशिवरात्रि
एक समय एक बहेलिया शिकार के लिए प्रात:काल अपने घर से निकला | सारे दिन जंगलों में इधर से उधर घूमता रहा साम हो गई अँधेरा होने को आ गया पर कहीं भी उसको शिकार नहीं मिला, और बिना शिकार लिए वह घर भी नहीं जा सकता था | वह जंगलों में घूमते - घूमते एक तालाब के किनारे जा पहुँचा | उस बहेलिये के मन में बिचार आया की यहाँ पर पानी है और पानी पाने के लिए कोई न कोई जानवर यहाँ अवश्य आयेगा और तब में उसका शिकार करूँगा | यह मन में विचार कर के एक पात्र में पीने के लिए पानी ले कर पास में खडें एक वृक्ष पर चढ़ गया और पशु के आने का इन्तजार करने लगा | थोड़ी देर में एक हिरन उस तालाब पर पानी पीने के लिए आया, तब शिकारी तुरन्त ही अपना तीर धनुष सम्भालने लगा | शिकारी को हिलने के कारण कुछ पानी और पेड़ के पत्ते टूट कर नीचे गिर गया | और पेड़ की आहट से हिरन ने देखा की शिकारी उसका वध करने को तैयार है | तब हिरन बोला भाई मेरी पत्नी और बच्चे हमारे इन्तजार में बैठे होंगे, में उनसे बोल कर आता हूँ तब तुम मेरा वध कर लेना | शिकारी बोला ठीक है | हिरन चला गया और शिकारी दूसरे पशु के इन्तजार में बैठ गया | कुछ देर बाद एक हिरन और जल पीने तालाब पर आया, शिकारी फ़िर अपना तीर धनुष उठाया जिससे फ़िर थोड़ा पानी नीचे गिरा और कुछ पत्ते भी | और आहट हुआ | हिरन ने देखा बहेलिया शिकार करने को तैयार है | हिरन बोला भाई मेरे पति और बच्चे मेरे इंतजार मे होंगे | इस लिए मे उन को बता कर आती हूँ, तब तुम मेरा वध कर लेना, शिकारी बोला ठीक है | हिरन चला गया, शिकारी फ़िर किसी दूसरे पशु के इंतजार मे बैठ गया | कुछ सयम बाद एक हिरन का बच्चा पानी पीने को आया | बहेलिया फ़िर अपना तीर धनुष उठाया | उसके हिलने के कारण फ़िर कुछ पानी और कुछ पत्ते टूट कर नीचे गिर गया और आहट भी हुआ | हिरन के बच्चे ने देखा की कोई बहेलिया वध कर ने को तैयार है | तब हिरन के बच्चे ने कहा भाई मेरे माता पिता मेरे इंतजार मे बैठे होंगे, मैं उनको बता कर आता हूँ, तब तुम मेरा वध कर लेना | बहेलिया बोला ठीक है, और हिरन का बच्चा चला गया | और बहेलिया फ़िर किसी दूसरे पशु के इंतजार मे बैठ गया | कुछ देर बाद एक और हिरन का बच्चा पानी पीने को आया | तब बहेलिया फ़िर शिकार के लिए अपना तीर धनुष उठाया, जिसके कारण फ़िर कुछ पानी और पत्ते नीचे गिर गया, कुछ आवाज भी हुआ | तब हिरन के बच्चे ने देखा की शिकारी उसका वध करने को तैयार है, हिरन के उस बच्चे ने शिकारी से कहा, भाई मेरे माता पिता और भाई मेरे इंतजार मे बैठे होंगे मै उनको बता कर आता हूँ, तब तुम मेरा वध कर लेना | शिकारी बोला ठीक है | और हिरन का बच्चा चला गया | शिकारी फ़िर पहले की तरह किसी दूसरे पशु का इंतजार करने लगा | कुछ देर बाद उसने देखा की हिरन सपरिवार के साथ वहाँ आ गया | हिरन ने उस बहेलिये से कहा ! बहेलिये भाई अब हम सपरिवार के साथ आ गए हैं, अब आप हम सब का वध कर सकते हैं हम सब आपके शिकार के लिए तैयार हैं | बहेलिये को हिरन के कर्म और बात को सुन कर दिव्य ज्ञान प्राप्त हो गया, और वह मन में विचार करने लगा कि जब एक पशु ये जानते हुए की मेरा वध होने बाला है और फ़िर भी मेरे शिकार के लिए आ गया है तो फ़िर भी मैं तो मनुष्य हूँ और मैं कितना मुर्ख हूँ जो अपनी भूख मिटाने के लिए इन सरल जीवों का वध करता हूँ उसके विचार बदल गये | और वह हिरन से बोला की तुम लोग वापस चले जाओ, मैं तुम लोगों का वध नहीं करूँगा | हिरन सपरिवार के साथ वापस चला गया | ये सब होते होते प्रात:काल हो गया | बहेलिये के इस पुण्यकर्म से वहाँ पर श्री शंकर भगवान प्रगट हो गये | बहेलिया उनके चरणों में लोट लगाने लगा, और मोक्ष को प्राप्त हुआ | बहेलिये को श्री शंकर भगवान जी के दर्शन इस लिये हुआ, क्यों कि उस दिन यही महा शिवरात्री का पर्व था और उस दिन बहेलिया सारे दिन शिकार न मिलने कारण भूखा रहा और रात में बार - बार पानी और पत्ता गिरने के कारण उसका शिव रात्री का व्रत और पूजन दोनों हो गया | क्यों कि वो पेड़ जिस पर बहेलिया चढ़ा था वह विल्व पत्र का पेड़ था और पेड़ के नीचे शिव जी कि पिण्डी थी | शिकारी जब हिलता था तब उसका पानी और विल्व पत्ता उसी पिण्डी पर गिरता था और देर होने के कारण एक पहर बीत जाते थे इससे उसके रात्री के चारो पहर का पूजा भी हो गया | इसी व्रत और पूजन के प्रभाव से उसको दिव्य ज्ञान और श्री शंकर भगवान जी के दर्शन हुये | और मोक्ष को प्राप्त हुआ | श्री शंकर भगवान सभी जीवों के कल्याण मयी हैं |
ॐ नमः शिवाय