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Saturday, February 21, 2009

महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष (भाग २)

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
|| ॐ नमः शिवाय ||
महाशिवरात्रि पर्व पर विशेष !
महाशिवरात्रि
कु. आकाँक्षा तिवारी ( शिखा ) शिक्षिका
श्री धाम वृन्दाबन - भारत
एक बार एक प्रश्न उठा कि भगवान शिव इतने जल्दी प्रसन्न क्यों हो जाते हैं ? ऋषि मुनी व ज्ञानी पुरुषों का मानना है कि भोलेनाथ हर समय अपने इष्ट प्रभू श्रीराम जी के ध्यान में रहते हैं और जब भी कोई उनका तप, अर्चन, वन्दन या पूजन करता है तो उस भक्त से पीछा छुड़ाने हेतु वे बिना विचारे उसे वरदान दे देते हैं ये भी नहीं सोचते की इसका फल कैसा होगा | इस बात का प्रमाण भी है :- 
एक बार एक दैत्य ने शिव जी की बड़ी घोर तपस्या की तो शिव जी प्रसन्न हुए और कहा माँगो क्या माँगना चाहते हो ? 
तब दैत्य ने कहा :- जिस पर हाथ रखूँ वह भस्म हो जाए | भगवान शिव जी ने तथास्तु कहकर जाना चाहा तब दैत्य ने कहा हे प्रभू ! मैं ये कैसे जानू कि आपने वरदान सही दिया है | इसलिए रुकिये मैं आपके सिर पर हाथ रखके देखता हूँ वरदान सत्य है या नहीं | इतना सुनते ही त्रिपुरारी अपनी जान बचाने हेतु नारायण के पास गये | तब नारायण ने मोहिनी रूप धारण कर दैत्यराज को मुग्ध कर नृत्य में लगा दिया | और उसका स्वयं का हाथ उसके सिर पर रखवा के भस्म करा दिया | इसी दैत्य को भस्मासुर के नाम से जाना जाता है |
इस कथा से सभी को अपने प्रश्न का उत्तर प्राप्त हुआ और प्रमाण भी मिला कि श्री शंकर भगवान जी कितने भोले भाले हैं और कितने जल्द प्रसन्न होने वाले हैं |
ऐसा भी माना जाता है कि भगवान शिव जी के आराध्य भगवान श्रीराम जी हैं ठीक उसी प्रकार से श्रीराम जी हर समय श्रीशंकर जी के ध्यान में लगे रहते हैं | दोनों ही एक दूसरे के इष्ट हैं | इस बात को प्रमाणित श्रीराम जी का कथन है :-
"शिव द्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहुँ मोही न भाव"
श्री शंकर भगवान अपने इष्ट श्रीराम जी का इतना वन्दन, पूजन और ध्यान करतें है कि उन्होंने प्रभु से छल के कारण अपनी पत्नी सती को माता मान लिया |
यह प्रसंग उस समय का है जब रावण ने सीता का हरण किया और श्रीराम व्याकुल होकर वन - वन भटक रहे थे, तब माता सती जी ने श्रीसीता जी का रूप धारण कर लिया और एक वृक्ष के नीचे बैठ गई | परन्तु श्रीराम जी, जो घट - घट में रमते हैं, उन्होंने उन्हें तुरन्त पहचान लिया और माता कहकर सम्बोधित किया | माता सती जी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ | लेकिन उस समय भगवान शिव जी ने कहा हे सती ! तुमने मेरे इष्ट श्रीराम जी की भार्या माता श्रीसीता जी का रूप धारण किया इस लिए आज से तुम मेरे लिए माता के समान हो |
इस प्रसंग से स्त्रीयों को शिक्षा प्राप्त होती है कि कभी भी अपने पति की इच्छ के विरुद्ध कोई कार्य ना करें, क्यों कि जब माता सती जी ने सीता का रूप धारण किया तब उन्हें अपने पति से अलगाव प्राप्त हुआ और जब उनके विपरीत जाकर पिता जी के यहाँ यज्ञ में गयी तो मृत्यु को प्राप्त हो गयी | तो इससे कुछ सीख लेनी ही चाहिए |
माता सती जी ही अपने दूसरे जन्म में पार्वती जी का रूप धारण कर अवतरित हुई और हिमालय की पुत्री कहलायी | इन्होंने अपने इस जन्म में बहुत कठोर तप के द्वारा श्रीशिव जी को पति के रूप में प्राप्त किया | भगवान श्रीशिव जी अपने इष्ट प्रभु श्रीराम जी की कथा का पान माता पार्वती जी को हमेशा कराते हैं |
भगवान को कभी भी अपने बाहरी नेत्रों से मत देखो वरना आप उसकी लीला को समझ नहीं पायेंगे | प्रभु की हर लीला गूढ़ रहस्यों से पूरित होती है जिनका किसी भी व्यक्ति को समझना मुश्किल होता है | उस परब्रह्म परमात्मा को वही समझ सकता है जिसे वह स्वयं समझाना चाहते हैं | भोलेनाथ को तो वैसे ही संसार का पालन कर्ता माना जाता है |
इसी लिए किसी ने कहा भी है :-
भोले नाथ से निराला कोई और नहीं,
गौरी नाथ से निराला कोई और नहीं,
ॐ नमः शिवाय