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Wednesday, December 24, 2008

ये वतन है, हमारा

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //

ये वतन है, हमारा


पं. लक्ष्मीकान्त शर्मा (कौशिक) 
श्री धाम वृन्दाबन-भारत

ये वतन है, हमारा वतन के हैं हम |
इसमें दुनिया का कोई इजारा नहीं || 
ये शहीदों के सपनों की तामील है, 
और हमारी ही जनता की जागीर है |
ये वतन है ..............................||
देश द्रोही निकल जाओ अब हिन्द से,
इस चमन में तुम्हारा गुजारा नहीं |
ये वतन है ..............................||
बदनजर जिसने डाली कभी भूलकर,
उसका दुनिया में कहीं भी गुजारा नहीं |
ये वतन है ..............................||
इसमें ईटें हैं जो हड्डियाँ जिस्म की,
और हमारे लहू का हि गारा बना |
ये वतन है ..............................||
उसकी हस्ती मिटा देंगे दुनिया से हम,
जिसने उँगली उठाई दुबारा कभी |
ये वतन है ..............................||
आज अपने ही पैरों पे होके खड़े,
काम पूरे करेंगे बड़े से बड़े |
ये वतन है ..............................||
जिंदगी में असूलों से गिरकर कभी,
हम ना लेंगे किसी से सहारा कभी |
ये वतन है ..............................||
आज गुलशन को फ़िर से निखारेंगे हम,
इसका जीवन दुबारा सवारेंगे हम |
ये वतन है ..............................||
हमने वादा किया उसको पूरा किया,
इसमें अहसान कोई हमारा नहीं |
ये वतन है ..............................||
जय श्री राधे राधे