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Monday, December 29, 2008

अपना कर्म

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
अपना कर्म
पं. राम लाल मिश्र
श्री धाम वृन्दाबन-भारत
एक समय गंगा दशहरा के पावन पर्व पर श्री गंगा जी के तट पर गंगा स्नान के लिये बहुत भीड़ लगी थी | सभी लोग आ रहे थे और स्नान कर के वापस जा रहे थे | उसी तट पर एक सन्त ( महात्मा ) स्नान के लिये आये | सन्त तट पर खड़े थे | उसी समय उनकी नजर नीचे तट पर गयी, तब उन्होंने देखा की एक विच्छू पानी में तैर रहा है, और वो बार - बार किनारे पर आना चाहता है पर पानी के हिलोरे वापस उसे गहरे जल की और डकेल रहे हैं | सन्त किनारे पर खड़े बहुत देर तक देखते रहे, सन्त जी का हृदय बहुत ही कोमल था उनसे विच्छू का प्रयास बार - बार निष्फल होना देख कर नहीं रहा गया, तब सन्त जी उसे अपने हाथ से उठा कर किनारे पर लाने लगे तब विच्छू ने सन्त जी के हाथ में डंक मार दिया | जिससे हाथ हिलने के कारण वो विच्छु वापस पानी में जा गिरा | सन्त जी फ़िर उसे उठा कर किनारे पर लाने लगे, तब फ़िर उसने सन्त जी के हाथ में डंक मारा जिससे वो फ़िर पानी में गिर गया |
इसी प्रकार सन्त जी उसे बार - बार किनारे पर लाने का प्रयास करते थे और वो बार - बार पानी में गिरता था | ये दृश्य पास में खड़े एक सज्जन बहुत देर से देख रहे थे | देखते - देखते बाद में उनसे नहीं रहा गया और वो सज्जन उन सन्त जी से पूछ बैठे ! महराज जी मैं ये बहुत देर से देख रहा हूँ कि ये विच्छू आपको बार - बार हाथ में डंक मार रहा है और आप बार - बार उसे पानी से निकालना चाह रहे हैं आख़िर क्यों ! सन्त महराज बोले क्या करें भाई, विच्छु का काम ही है डंक मारना और हमारा काम है बचाना |
क्यों की "सन्त का काम ही है डूबते हुये को बचाना" | और फ़िर विच्छू कि समझ ही इतनी है वो ये थोड़े ही समझ रहा है की ये हमको बचाने का प्रयास कर रहे हैं | पर हम तो सन्त कोमल चित्त वाले, हमसे इसका प्रयास बार - बार निष्फल होना देख कर नहीं रहा गया, इस कारण हम इसकी सहायता करने लगे | इसका जो कर्म है सो ये कर रहा है और हमारा जो कर्म है सो हम कर रहे हैं | यह सुन कर उन सज्जन जी का हृदय ज्ञान से भर आया | उन्हें भी अपने कर्म का ज्ञान हो गया, वो बार - बार सन्त महराज जी को प्रणाम करने लगे | और हरी स्मरण करते हुए अपने घर की और प्रस्थान कर गये |  
जय श्री राधे राधे