श्री जानकीवल्लभो विजयते
श्री गोपाष्टमी का महात्म्य
एक समय नैमिषारण्य तीर्थ क्षेत्र में शौनकादि ८८ हजार ऋषियों ने श्री सूत जी से कहा - हे ब्रह्मण ! आप हमारी इस घोर कलयुग से रक्षा करने के लिए कोई सरल उपाय बताएँ.
सूत जी कहने लगे - बाल्यावस्था में भगवान श्रीकृष्ण कार्तिक शुक्ल अष्टमी के दिन गाय और बछडों की पूजा करके गाय चराने का मुहूर्त किया. वह दिन ( कार्तिक शुक्ल अष्टमी ) गोपाष्टमी कहलाती है. इस दिन सब मनोकामनाओं को पूर्ण करने के लिए गौ माता का पूजन करना चाहिए. तदनंतर गौ माता की परिक्रमा करके गौ माता के पीछे - पीछे चलना चाहिए. श्रीकृष्ण जी की परमप्रिया श्रीराधा जी के नाम से विख्यात श्री राधाकुण्ड में स्नान करके जो श्रीकृष्ण जी का पूजन करता है.उसके सब पाप गोधूली से नाश को प्राप्त हो जाते हैं. इस दिन गोधूली के समय गौओं के पीछे चलने से सैकड़ों जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं. इस दिन गौ का दान करने से असंख्य गौओं के दान का फल मिलता है. यदि इस दिन सायंकाल के समय श्रवण नक्षत्र हो तो वह जयंती योग कहलाता है. उसमें स्नान - दान करने से मनुष्य शीघ्र ही मोक्ष को प्राप्त हो जाता है.
जय श्रीकृष्णा