महामंत्र > हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे|हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे||

Monday, September 29, 2025

महा महोत्सव

हमारे देश में माता- पिता  गुरु को भगवान का दर्जा दिया जाता है | गुरु की कृपा तथा माता-पिता के आशीवार्द से सभी कार्य पूर्ण होते हैं | एक कहावत ( दोहे) के द्वारा इस बात को साबित भी किया गया है कि गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पायँ |
बलिहारी गुरु आपकी, गोविन्द दियो मिलाए ||
ऐसा ही कुछ अयोध्या नरेश महाराज दशरथ के बारे में मनीषि जनों का कहना है | धन- धान्य, सुख समृद्धि से परिपूर्ण महाराज दशरथ के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी और सम्पूर्ण राज्य में खुशहाली थी | राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी | बड़ी रानी कौशल्या मझली रानी कैकयी और छोटी रानी सुमित्रा | सभी सुखों के होने पर भी राजा दशरथ के मन में एक दुःख था जिस दुःख के निवारण हेतु राजा दशरथ अपने कुलगुरु वशिष्ठ जी की शरण में गये और जाते ही उन्होंने आज के लोगों की तरह अपने दुखों का बरवान नहीं किया अपितु गुरु जी से आश्रम की तथा आश्रम वासियों की सुख व् कुशलता के बारें मे पुचा | जब गुरुदेव ने कहा महाराज आपके आने का क्या कारण हैं ? राजा दशरथ ने गुरुदेव से कहा आपकी कृपा से सभी सुखी है परन्तु केवल परन्तु कहकर राजा दशरथ मोन हो गये और गुरुदेव के दुबारा पूछने पर अपनी इच्छा व्यक्त की और कहा प्रभु सभी सुख है परन्तु घर (महल) का आँगन सूना हैं , मेरा वंश चलाने वाला कोई नहीं | इस पर गुरु वशिष्ठ ने कहा:- धरहु धीर हुइहें सुत चारी | संशय ताप मिटावन हारी || हे राजन ! आप धैर्य धारण करो आप एक पुत्र की बात कर रहे हो आपके तो चार पुत्र होंगे जो इतने वीर व ज्ञानी होंगे जिनके नाम सारा संसार बड़े आदर व सम्मान के साथ लेगा | तब गुरु वाशिस्था ने राजा दशरथ से सन्तान प्राप्ति यज्ञ करवाया जिसके परिणाम स्वरूप अग्निदेव प्रकट हुए और चरु (खीर) प्रसाद के रूप में दिया | अग्निदेव दध्र दिये गये प्रसाद को राजा ने तीनों रानियों को बाँट दिया | जब रानियाँ चरु ग्रहण करने लगी तभी अचानक एक कोआ आया जिसने छोटी रानी सुमित्रा के हाथ से प्रसाद को उठा लिया और आकाश में उड़ता चला गया और उस प्रसाद को माता अंजनी की गोद में डाला गया जिसके फलस्वरूप हनुमान जी का प्राकट्य हुआ | उधर अयोध्या में जब कोआ प्रसाद लेकर उड़ गया तो कौशल्या और केकयी ने अपने-अपने प्रसाद से एक एक हिस्सा सुमित्रा को दिया | ऐसा माना जाता हैं कि दोनों के दिये हुए प्रसाद के कारण सुमित्रा दो पुत्र हुए | श्री राम के जन्म का समय बहुत ही अदभुत है | छात्र मास में शुकल पक्ष की नवमी को श्री राम चन्द्र ने दोपहर के १२ बजे जन्म लिया | इनके जन्म के विषय में एक कहावत है जो गो. तुलसी दास जी ने अपनी श्री रामचरित्रमानस की चोपाई में लिखी है :- नवमी तिथि मधु मास पुनीता | शुक्ल पक्ष अभिजित हरि प्रीता |
राम जी के जन्म के विषय में एक प्रशन उठा कि श्री राम ने नवमी तिथि को ही जन्म क्यों लिया ? इस प्रश्न के उत्तर में हम कह सकते हैं or मानते है कि श्री राम मर्यादा पुरुसत्तम हैं इसी कारण उनहोंने नौ का अंक चुना क्यों कि नौ का अंक पूर्ण हैं | इस बात को हम सिध्द भी कर सकते हैं नौ के पहाडे को पढ़ने के बाद आप जोड़े तो सभी अंक नौ मे ही आयेंगे। मेंकेवल एक मात्र यही कारण था कि भगवान राम ने नवमी तिथि को जन्म लिया | और अपनी सारी लीलाएं मर्यादा में
रहकर ही पूर्ण की |भगवन के मानव के रूप धारण करने का एक मात्र कारण संत, ब्राह्मण , धेनु, सुर हैं क्यों कि भगवान को ये सभी इतने प्रिय है कि कोई कल्पना नहीं की जा सकती |इसी कारण त्रेतायुग तथा द्वापर युग में मानव रूप धारण किया | जब -जब पृथ्वी पर अत्याचार होते हैं संतो का, ब्राह्मणों का, देवताओ और गायों कहानन होता है तभी भगवान मानव रूप धारण करते हैं | जब जब होय धरम की हानी, बाढे असुर, अधम, अभिमानी || भये प्रकट कृपाला दीन दयाला कोशल्या हितकारी | हरषित महतारी मुनि मन हारी अदभुत रूप निहारी || लोचन अभिरामा तनु घनश्यामा निज आयुद भुजचारी | भूसन वनमाला नयन विशाला सोभासिंधु खरारी || कह दुई कर जोरी अस्तुति तोरी कही विधि करो अनंता | माया गुण ग्याना तीत अमाना वेद पुरान भनंता || करुना सुख सागर सब गुण आगर जेहिं गावहीं श्रुति संता | सो मम हित लागी जन अनुरागी भयऊ प्रगत श्रीकंता ||
ब्रह्माड निकाय निर्मित माया रोम रोम।