आखिरकार एक दिन वह श्री केदार धाम जी पहुंच ही गया। केदारनाथ जी में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते हैं। वह उस समय पर पहुंचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया कि वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की - कृपा कर के दरवाज़े खोलकर प्रभुजी के दर्शन करवा दीजिये।
लेकिन यहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद, नियम तो नियम होता है ऐसा पंडित जी का कहना था।
वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिवजी को याद किया कि प्रभुजी बस एक बार दर्शन दे दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, कि पंडित जी को बोलकर कृपया एक बार तो दर्शन करवा दो। लेकिन किसी ने भी नहीं सुनी।
पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहां के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और अत्यधिक ठंड पड़ती है। और सभी जन वहां से चले गये। वह वहीं पर रोता रहा। रोते-रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया। लेकिन उसे विश्वास था अपने शिवजी पर कि वो जरुर कृपा करेंगे। उसे बहुत भूख और प्यास भी लग रही थी। उसने किसी के आने की आहट सुनी। देखा एक सन्यासी बाबाजी उसकी ओर आ रहे हैं। वह सन्यासी बाबाजी उस के पास आये और पास में बैठ गये। पूछा - बेटा कहाँ से आये हो ?
उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा यहाँ पर आना व्यर्थ हो गया बाबा जी!
बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया। और फिर बहुत देर तक बाबाजी उससे बातें करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गयी। वह बोले, बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरुर करोगे।
बाबाजी ने अपनी गोद का सिरहाना दे उसके सिर को सहलाते हुए गोद में सुलाया।
बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी। सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली। उसने इधर उधर बाबाजी को देखा, किन्तु वे वहां नहीं थे । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित जी आ रहे हैं अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडितजी को प्रणाम किया और बोला- कल तो आप ने कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा ? और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ, लेकिन आप तो सुबह ही आ गये। पंडित जी ने उसे गौर से देखा, पहचानने की कोशिश की और पुछा - तुम वही हो ना जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे ? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए ! उस आदमी ने आश्चर्य से कहा - नहीं-नहीं, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे, रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।
उन्होंने कहा - लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूँ। तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रहे ? आश्चर्य है! पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी। इतनी भयंकर सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे छः महीने तक ज़िन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबाजी के मिलने और उनके साथ की गयी सारी बातें बता दी, कि एक सन्यासी आये थे - लम्बे से थे, बड़ी-बड़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुए थे। पंडित जी और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले, हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभुजी के दर्शन ना पा सके, सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात शिवजी के दर्शन किये हैं। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा और विश्वास के कारण ही हुआ है।