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Thursday, March 20, 2025

संत श्री मोहन देव जी

एक बार एक सिद्ध संत श्री मोहन देव जी वृंदावन आए उन्होंने बोहोत सी सिद्धियाँ प्राप्त कर रखी थी वृंदावन में वो एक शाम को यमुना जी की किनारे बैठे थे वहीं एक वृध संत बैठे थे जो राधा राधा राधा बस निरंतर यही जप कर रहे थे।
मोहनदेव जी बोले बाबा बस नाम ही रटते रहते हो या कुछ पाया भी है।
संत बोले "बाबा हमें तो कुछ पाना नही ! जो पाना था वो यही नाम है सो मिल गया। आप क्या पाने की बात कर रहे है ?
मोहनदेव जी तो शायद इसी मौक़े का इंतज़ार कर रहे थे की अवसर मिले अपनी सिद्धी दिखाने का वो तपाक से बोले बताना क्या दिखाये है।
वो उठे कुछ बुदबुदाए और यमुना जी के जल पर ऐसे चलने लगे जैसे भूमि पर चल रहे हो  पूरी नदिया पार करी और वापस आकर बोले देखा बाबा कैसा चमत्कार ये पाया हमने।
वृध वृंदावन के संत ने पास खड़े एक मल्लाह को बुलाया और पूछा क्यूँ भाई नदिया पार जाने का क्या लोगे ।
वो बोला बाबा आपसे कुछ नही ले सकता ।
बाबा पूनः बोले भाई हमें जाना नही किंतु साधारणतः क्या लेते हो ?
मल्लाह बोले बाबा चार आना। बाबा मोहनदेव जी से बोले भाई जो काम चार आने में हो सकता है उसे सिद्ध करने के लिए तुमने जीवन गंवा दिया। मिथ्या अभिमान और मुफ़्त की नौटंकी दिखाने के अलावा क्या हाथ लगा ? भाई जो जीवन चला गया और हरी ना मिले तो "बाबा की आँखों से आंसुओं की धारा बह चली और गला रुंध गया और एक शब्द न निकला।
यही सार है भाई जीवन में सब मिल जाए पर जो हरी न मिले तो धिक्कार है खुद पर न जाने ये जीवन दुबारा मिलेगा या नही और हम इसको यूँ ही व्यर्थ कर दें ! मूर्ख न बन ऐ बंदे सब कर न कर पर उनका नाम ना रुकने पाए उनकी याद न जाने पाए।