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Tuesday, November 26, 2024

आस्था अलग है, तर्क अलग है

मैं, प्रयागराज जा रहा था ट्रेन से। साथ में गाँव के एक भईया थे, शारीरिक रूप से वो करीब साढ़े छः फुट लम्बे पहलवान की भांति थे।  
तो, भईया ऊपर की सीट पर लम्बे होकर सो रहे थे, और नीचे लोग ठसाठस भरे हुए थे। मैं भी नीचे ही बैठकर कोई पत्रिका पढ़ रहा था। इतने में किसी ने कहा कि 'अब ट्रेन गंगा जी के ऊपर से गुजरेगी' तो ट्रेन में मौजूद कई महिलायें खिड़की की ओर दौड़ीं। कोई प्रणाम करने की तैयारी करने लगा, तो कोई सिक्का डालने की। 
अब खिड़की के पास तीन प्रगतिशील प्रकार के भद्र पुरुष बैठे थे, उनसे रहा नहीं गया। वो शुरू हो गए अपने ज्ञान-विज्ञान को लेकर, "पता नहीं क्यों भारत में इतना अन्धविश्वास है, लोग मूर्ख हैं यहाँ। नदी पहाड़ पत्थर पूजते हैं। नदियों को माँ कहते हैं। जरा सी बुद्धि नहीं है इन सबमें, सब पढ़े लिखे मूर्ख हैं। तर्क किस चिड़िया का नाम है, इन जाहिलों को क्या पता, .. वगैरह वगैरह,... "
वहां उपस्थित सब धार्मिक लोग बेचारे यह सुनकर खिसिया से गए, तो मुझे अच्छा नहीं लगा।  मैं भी स्वयं को आस्तिक मानता हूँ, और मेरी आस्थाओं/ मान्यताओं पर कोई बिना मतलब हमला करे, वो भी धिक्कारते हुए, तो मुझसे सहा नहीं जाता। तो मैं बोल पड़ा, "अंकल,आप लोग तर्क की बात कर रहे हैं, लेकिन भोले-भाले मासूम लोगों की, ऐसे किसी क्रियाकलाप से जिससे किसी को कोई नुक्सान न पहुंचे, उससे आपको क्या परेशानी है? क्यों लोगों को आप बुद्धि के नाम पर जलील कर रहे हैं? इसका क्या अधिकार है आपको?"
एक ने हँसकर कहा, "ये देखो! अब ये  हमसे तर्क करेगा। बेटा, मार्क्स-लेनिन-रूसो काफ्का-फाफ्का-साफ्का इत्यादि का नाम सुना भी है कभी जीवन में? ऐसे ही तर्क करोगे? बताओ, बताओ कि तुम लोग एक निर्जीव नदी को किस तर्क से 'माँ' बोलते हो? बताओ, तर्क से प्रमाणित करो!"
मैं अचरज में पड़ गया। एक पूज्यनीय नदी और उसके कुछ भोले भक्तों के बीच यह काफ्का साफ्का कहाँ से घुस गया? मैं अभी कुछ कहने ही जा रहा था कि भईया ऊपर की सीट से हनुमान जी की तरह गर्जना करते हुए कूदे। खिड़की तक गए, और भयंकर तीव्र आवाज में हाथ जोड़कर बोले, "जय हो गंगा मईया की"। जयकारा लगाने के बाद वो मेरे समीप बैठकर बोले, 
"गंगा मेरी माँ है। और मैं अपनी माँ को माँ ही कहूँगा, इसमें कोई तर्क की गुंजाइश है ही नहीं।"
एक तुरंत बोला, "ये क्या तरीका है तर्क करने का? जब बुद्धि न हो, तर्क न हो तो इंसान ऐसे ही बात करता है।"
भईया अपने शर्ट की बाजू को एकदम बांह की मछलियों तक चढाते हुए जोर से बोले, "चोप्प,...!! तेरा तर्क कहता है कि तेरे माँ बाप की शादी एक 'लिखित वेश्यावृत्ति' है। तू अपनी माँ को वेश्या कह, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। अपने बाप को 'वेश्या के साथ गुलछर्रे उड़ाने वाला' कह ले, मुझे तनिक भी आपत्ति नहीं है। लेकिन मेरी माँ को कुछ कहेगा, तो तेरी मुंडी मरोड़ कर यहीं गाड़ दूंगा।" 
भद्र लोग तीन व्यक्ति थे, पर भईया का रौद्र रूप देखकर सिकुड़ गए, और कुछ ही क्षणों में उनको नींद आ गई। 
थोड़ी देर बाद भईया हमसे बोले, "तू तर्क कर रहा था? हर बात में तर्क नहीं चला करते। आस्था अलग है, तर्क अलग है। आस्था पर भी तर्क हो सकता है, पर वह तभी जब सामने वाला सही नीयत से, आदर से, जिज्ञासु प्रवृत्ति से तर्क करे। विवेकानंद कहा करते थे कि अगर धर्म पर तर्क करना है तो पहले शारीरिक और मानसिक रूप से शक्तिवान बनो। ताकि बुद्धिमानों से तर्क कर सको और कुतर्कियों का मुंह तोड़ सको। 

"जो बेशर्म हो, निर्लज्ज हो, जो स्वयं को "क़ानूनी वेश्यावृत्ति से पैदा हुआ बोले", उसकी ऐसी बेशर्मी के सम्मुख तर्क से कैसे जीतोगे