एक व्यक्ति लाहौर से कीमती रूहानी इत्र लेकर आये थे। क्योंकि उन्होंने सन्त श्री हरिदास जी महाराज और बांके बिहारी के बारे में सुना हुआ था। उनके मन में आये की मैं बिहारी जी को ये इत्र भेंट करूँ। इस इत्र की खासियत ये होती है की अगर बोतल को उल्टा कर देंगे तो भी इत्र धीरे धीरे गिरेगा और इसकी खुशबु लाजवाब होती है। ये व्यक्ति वृन्दावन पहुँचा। उस समय सन्त जी एक भाव में डूबे हुए थे। सन्त देखते है की राधा-कृष्ण दोनों होली खेल रहे हैं। जब उस व्यक्ति ने देखा की ये तो ध्यान में हैं तो उसने वह इत्र की शीशी उनके पास में रख दी और पास में बैठकर सन्त की समाधी खुलने का इंतजार करने लगा।
तभी सन्त देखते हैं की राधा जी और कृष्ण जी एक दूसरे पर रंग डाल रहे हैं। पहले कृष्ण जी ने रंग से भरी पिचकारी राधा जी के ऊपर मारी। और राधा रानी सिर से लेकर पैर तक रंग में रंग गई। अब जब राधा जी रंग डालने लगी तो उनकी कमोरी (छोटा घड़ा) खाली थी। सन्त को लगा की राधा जी तो रंग डाल ही नहीं पा रही हैं, क्योंकि उनका रंग खत्म हो गया है। तभी सन्त ने तुरन्त वह इत्र की शीशी खोली और राधा जी की कमोरी में डाल दी और तुरन्त राधा जी ने कृष्ण जी पर रंग डाल दिया। हरिदास जी ने सांसारिक दृष्टि में वो इत्र भले ही रेत में डाला। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि में वो राधा रानी की कमोरी में डाला।
उस भक्त ने देखा की इन सन्त ने सारा इत्र जमीन पर गिरा दिया। उसने सोचा में इतने दूर से इतना महंगा इत्र लेकर आया था पर इन्होंने तो इसे बिना देखे ही सारा का सारा रेत में गिरा दिया। मैंने तो इन सन्त के बारे में बहुत कुछ सुना था। लेकिन इन्होने मेरे इतने महंगे इत्र को मिट्टी में मिला दिया। वह कुछ भी ना बोल सका। थोड़ी देर बाद सन्त ने आँखें खोली उस व्यक्ति ने सन्त को अनमने मन से प्रणाम किया। अब वो व्यक्ति जाने लगा। तभी सन्त ने कहा- ”आप अन्दर जाकर बिहारी जी के दर्शन कर आएँ।” उस व्यक्ति ने सोचा कि अब दर्शन करें या ना करें क्या लाभ। इन सन्त के बारे में जितना सुना था सब उसका उल्टा ही पाया है। फिर भी चलो चलते समय दर्शन कर लेता हूँ। क्या पता अब कभी आना हो या ना हो। ऐसा सोचकर वह व्यक्ति बांके बिहारी के मन्दिर में अन्दर गया तो क्या देखता है की सारे मन्दिर में वही इत्र महक रहा है और जब उसने बिहारी जी को देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ बिहारी जी सिर से लेकर पैर तक इत्र में नहाए हुए थे। उसकी आँखों से प्रेम के आँसू बहने लगे और वह सारी लीला समझ गया तुरन्त बाहर आकर सन्त के चरणों मे गिर पड़ा और उन्हें बार-बार प्रणाम करने लगा। और कहता है सन्त जी मुझे माफ़ कर दीजिये। मैंने आप पर अविश्वास दिखाया। सन्त ने उसे माफ कर दिया और कहा कि भैया तुम भगवान को भी सांसारिक दृष्टि से देखते हो लेकिन मैं संसार को भी आध्यात्मिक दृष्टि से देखता हूँ।