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Thursday, October 3, 2024

साफ हृदय

बरसाना में एक भक्त थे, ब्रजदास। उनकी एक पुत्री थी, नाम था रतिया। बस इतना ही था ब्रजदास का परिवार। ब्रजदास दिन में अपना काम क़रते और शाम को श्री जी के मन्दिर में जाते दर्शन करते और जो भी संत आये हुवे होते हैं उनके साथ सत्संग करते। 
यही उनका नियम था। एक बार एक संत ने ब्रजदास से कहा भईया हमें नन्दगांव जाना है, सामान ज्यादा है तो तुम हम को नन्दगाँव पहुँचा सकते हो क्या ? 
ब्रजदास ने हां भर ली। ब्रज दास ने अपनी बेटी से कहा मुझे एक संत को नन्दगाँव पहुचाना है। समय पर आ जाऊँगा, प्रतीक्षा मत करना। ब्रजदास सुबह चार बजे राधे -राधे जपते - जपते नंगे पांव संत के पास गये और संत के सामान और ठाकुर जी की पेटी और बर्तन ले लिये और चलने लगे। 
रवाना तो समय पर हुवे लेकिन संत को स्वास् रोग था कुछ दूर चलते फिर बैठ जाते। इस प्रकार नन्दगाँव पहुँचने में ही देरी हो गई। ब्रजदास ने सामान रख कर जाने की आज्ञा मांगी। संत ने कहा जून का महीना है, ११ बजे हैं, जल पी लो। कुछ जलपान कर लो, फिर चले जाना तो ब्रजदास ने कहा बरसाने की वृषभानु नंदनी नन्दगाँव में ब्याही हुई है अतः मैं यहाँ जल नहीं पी सकता।
संत की आँखों से अश्रुपात होने लगे । कितने वर्ष पुरानी बात है , कितना गरीब आदमी है पर दिल कितना ऊँचा है। ब्रजदास वापिस राधे राधे करते रवाना हुवे। ऊपर से सूरज की गर्मी नीचे तपती रेत। भगवान को दया आ गयी वे भक्त ब्रजदास के पीछे - पीछे चलने लगे। एक पेड़ की छाया में ब्रजदास रुके और वही मूर्छित होकर गिर पड़े।
भगवान ने मूर्छा दूर क़रने के प्रयास किये पर मूर्छा दूर नहीं हुई। भगवान ने विचार किया कि मैंने अजामिल, गीध, गजराज को तारा, द्रोपदी को संकट से बचाया पर इस भक्त के प्राण संकट में हैं कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। ब्रजदास राधारानी का भक्त है वे ही इस के प्राणों की रक्षा कर सकती हैं तो उनको ही बुलाया जाए । 
भगवान भरी दुपहरी में राधारानीके पास महल में गये। राधारानी ने इस गर्मी में आने का कारण पूछा। भगवान भी पूरे मसखरे हैं। उन्होंने कहा तुम्हारे पिता जी बरसाना और नन्दगाँव की डगर में पड़े हैं तुम चलकर संभालो। राधा जी ने कहा कौन पिता जी ?
भगवान ने सारी बात समझाई और चलने को कहा। यह भी कहा कि तुमको ब्रजदास की बेटी की रूप में भोजन , जल लेकर चलना है। राधा जी तैयार होकर पहुँची। पिता जी.. पिता जी.. आवाज लगाई। ब्रजदास जागे। बेटी के चरणों में गिर पड़े, और बोले - आज तू न आती तो प्राण चले जाते। 
बेटी से कहा आज तुझे बार - बार देखने का मन कर रहा है। राधा जी ने कहा माँ बाप को संतान अच्छी लगती ही है। आप भोजन लीजिये। ब्रजदास भोजन लेने लगे तो राधा जी ने कहा घर पर कुछ मेहमान आये हैं मैं उनको संभालू आप आ जाना। कुछ दूरी के बाद राधारानी अदृश्य हो गयीं ।
ब्रजदास ने ऐसा भोजन कभी नहीं पाया। शाम को घर आकर ब्रजदास बेटी के चरणों में गिर पड़े। बेटी ने कहा आप ये क्या कर रहे हैं ? ब्रजदास ने कहा आज तुमने भोजन, जल लाकर मेरे प्राण बचा लिये। बेटी ने कहा मैं तो कहीं नहीं गयी। ब्रजदास ने कहा अच्छा बता मेहमान कहाँ हैं ? बेटी ने कहा कोई मेहमान नहीं आया।
अब ब्रजदास के समझ में सारी बात आई। उसने बेटी से कहा कि आज तुम्हारे ही रूप में राधा रानी के दर्शन हुवे। 
भाव बिभोर हो गये ब्रजदास, मेरी किशोरी ने मेरे कारण इतनी प्रचण्ड गर्मी में कष्ट उठाया मेरी बेटी के रूप में आकर मुझे भोजन कराया, जल पिलाया और मैं उन्हें पहचान ना सका ..... 
अब तो बस एक ही आस निरन्तर लगी रहती फिर से श्री राधा रानी के दर्शन मिलें ।
बरसाना बरसाना, हो प्रेमी भक्तों का है यह पागलखाना राधा नाम के पागल राधा राधा गुण गाएं जग की नहीं परवाह मुक्ति को ठुकराएं
बरसाने की भूमि, हो सब धामो की मुकट मणि, मनमोहन ने चूमी
बरसाने में विहरत जहां वृषभानु लली मुकुट से देत बुहारी मोहन उसी गली बरसाना बरसाए, हो।