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Tuesday, October 8, 2024

घमंड और साधना


संत कबीर गांव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल के साथ रहते थे संत कबीर जी का रोज का नियम था- नदी में स्नान करके गांव के सभी मंदिरों में जल चढाकर दोपहर बाद भजन में बैठते, शाम को देर से घर लौटते।

वह अपने नित्य नियम से गांव में निकले थे इधर पास के गांव के जमींदार का एक ही जवान लडका था जो रात को अचानक मर गया. रात भर रोना-धोना चला।

आखिर में किसी ने सुझाया कि गांव के बाहर जो बाबा रहते हैं उनके पास ले चलो शायद वह कुछ कर दें सब तैयार हो गए लाश को लेकर पहुंचे कुटिया पर देखा बाबा तो हैं नहीं, अब क्या करें ?

तभी कमाल आ गए. उनसे पूछा कि बाबा कब तक आएंगे ? कमाल ने बताया कि अब उनकी उम्र हो गई है सब मंदिरों के दर्शन करके लौटते-लौटते रात हो जाती है आप काम बोलो क्या है ?

लोगों ने लड़के के मरने की बात बता दी कमाल ने सोचा कोई बीमारी होती तो ठीक था पर ये तो मर गया है अब क्या करें  फिर भी सोचा लाओ कुछ करके देखते हैं. शायद बात बन जाए‌।
कमाल ने कमंडल उठाया लाश की तीन परिक्रमा की. फिर तीन बार गंगा जल का कमंडल से छींटी मारा और तीन बार राम नाम का उच्चारण किया. लडका देखते ही देखते उठकर खड़ा हो गया लोगों की खुशी की सीमा न रही‌।
इधर कबीर जी को किसी ने बताया कि आपके कुटिया की ओर गांव के जमींदार और सभी लोग गए हैं. कबीर जी झटकते कदमों से बढ़ने लगे. उन्हें रास्ते में ही लोग नाचते कूदते मिले. कबीर जी कुछ समझ नही पाए।
आकर कमाल से पूछा कया बात हुई ? तो कमाल तो कुछ ओर ही बताने लगा. बोला- गुरु जी बहुत दिन से आप बोल रहे थे ना की तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अब आप जाओ यहां तो मैं सब संभाल लूंगा।
कबीर जी ने पूछा क्या संभाल लेगा ? कमाल बोला- बस यही मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना. ये तो सब अब मैं ही कर लूंगा. अब आप तो यात्रा पर जाओ जब तक आप की इच्छा हो।
कबीर ने मन ही मन सोचा- चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है पर सिद्धि के साथ ही साथ इसे घमंड भी आ गया है. पहले तो इसका ही इलाज करना पडेगा बाद मे तीर्थ यात्रा होगी क्योंकि साधक में घमंड आया तो साधना समाप्त हो जाती है।
कबीर जी ने कहा ठीक है. आने वाली पूर्णमासी को एक भजन का आयोजन करके फिर निकल जाउंगा यात्रा पर. तब तक तुम आस-पास के दो चार संतो को मेरी चिट्ठी जाकर दे आओ. भजन में आने का निमंत्रण भी देना।
कबीर जी ने चिट्ठी मे लिखा था- 
कमाल भयो कपूत, कबीर को कुल गयो डूब
कमाल चिट्ठी लेकर गया एक संत के पास. उनको चिट्ठी दी. चिट्ठी पढ के वह समझ गए. उन्होंने कमाल का मन टटोला और पूछा कि अचानक ये भजन के आयोजन का विचार कैसे हुआ ?
कमाल ने अहं के साथ बताया- कुछ नहीं. गुरू जी की लंबे समय से तीर्थ पर जाने की इच्छा थी.अब मैं सब कर ही लेता हूं तो मैने उन्हें कहा कि अब आप जाओ यात्रा कर आओ‌ तो वह जा रहे है ओर जाने से पहले भजन का आयोजन है।
संत दोहे का अर्थ समझ गए. उन्होंने कमाल से पूछा- तुम क्या क्या कर लेते हो ? तो बोला वही मरे को जिंदा करना बीमार को ठीक करना जैसे काम।
संत जी ने कहा आज रूको और शाम को यहां भी थोडा चमत्कार दिखा दो. उन्होंने गांव में खबर करा दी थोडी देर में दो तीन सौ लोगों की लाईन लग गई. सब नाना प्रकार की बीमारी वाले। संत जी ने कमाल से कहा- चलो इन सबकी बीमारी को ठीक कर दो।
कमाल तो देख के चौंक गया. अरे, इतने सारे लोग हैं इतने लोगों को कैसे ठीक करूं, यह मेरे बस का नहीं है. संत जी ने कहा- कोई बात नहीं. अब ये आए हैं तो निराश लौटाना ठीक नहीं. तुम बैठो।
संत जी ने लोटे में जल लिया और राम नाम का एक बार उच्चारण करके छींट दिया. एक लाईन में खड़े सारे लोग ठीक हो गए. फिर दूसरी लाइन पर छींटा मारा वे भी ठीक। बस दो बार जल के छींटे मार कर दो बार राम बोला तो सभी ठीक हो के चले गए।
संत जी ने कहा- अच्छी बात है कमाल। हम भजन में आएंगे. पास के गांव में एक सूरदास जी रहते हैं. उनको भी जाकर बुला लाओ फिर सभी इक्ठ्ठे होकर चलते हैं भजन में।
कमाल चल दिया सूरदास जी को बुलाने। सारे रास्ते सोचता रहा कि ये कैसे हुआ कि एक बार राम कहते ही इतने सारे बीमार लोग ठीक हो गए. मैंने तीन बार प्रदक्षिणा की,तीन बार गंगा जल छिड़क कर तीन बार राम नाम लिया तब बात बनी।
यही सोचते-सोचते सूरदास जी की कुटिया पर पहुंच गया, जाके सब बात बताई कि क्यों आना हुआ। कमाल सुना ही रहा था कि इतने में सूरदास बोले- बेटा जल्दी से दौड के जा, टेकरी के पीछे नदी में कोई बहा जा रहा है. जल्दी से उसे बचा ले‌।
कमाल दौड के गया. टेकरी पर से देखा नदी में एक लडका बहा आ रहा था. कमाल नदी में कूद गया और लडके को बाहर निकाल कर अपनी पीठ जी लादके कुटिया की तरफ चलने लगा।
चलते- चलते उसे विचार आया कि अरे सूरदास जी तो अंधे हैं. फिर उन्हें नदी और उसमें बहता लडका कैसे दिख गया. उसका दिमाग सुन्न हो गया था. लडके को भूमि पर रखा तो देखा कि लडका मर चुका था।
सूरदास ने जल का छींटा मारा और बोला- “रा”. तब तक लडका उठ के चल दिया. अब तो कमाल अचंभित की अरे इन्हें तो पूरा राम भी नहीं बोला. खाली रा बोलते ही लडका जिंदा हो गया‌।
तब कमाल ने वह चिट्ठी खोल के खुद पढी की इसमें क्या लिखा है जब उसने पढा तो सब समझ मे आ गया।
वापस आ के कबीर जी से बोला गुरु जी संसार मे एक से एक सिद्ध हैं उनके आगे मैं कुछ नहीं हूं. गुरु जी आप तो यहीं रहिए. अभी मुझे जाकर भ्रमण करके बहुत कुछ सीखने समझने की जरूरत है।

कथा का तात्पर्य कि गुरू की कृपा से सिद्धियां मिलती हैं। उनका आशीर्वाद होता है तो साक्षात ईश्वर आपके साथ खड़े होते हैं। गुरू, गुरू ही रहेंगे। वह शिष्य के मन के सारे भाव पढ़ लेते हैं और मार्गदर्शक बनकर उन्हें पतन से बचाते हैं।