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Thursday, September 19, 2024

प्यार और सम्मान

रात के ९:०० बजे थे मनोज ऑफिस से थका-हारा घर लौटा। दरवाज़ा पार करते ही उसकी पत्नी, काव्या, बिना किसी वजह के उस पर चिल्लाने लगी। यह अब उसकी रोज़ की आदत बन चुकी थी। काव्या मनोज से खुश नहीं थी। उसे अब मनोज का शांत स्वभाव और साधारण जीवनशैली बोझ लगने लगी थी। मनोज ने शांत रहते हुए केवल इतना कहा, "काव्या, मुझे कुछ खाने को दे दो, बहुत भूख लगी है।"
काव्या ने गुस्से में कहा, "खाना खुद ही बना लो, मुझे सोना है। तुम्हारे लिए मेरे पास वक्त नहीं है।" 
मनोज ने फिर भी कोई शिकायत नहीं की और चुपचाप एक कोने में जाकर बैठ गया। काव्या ने रातभर उसे ताने दिए, पर मनोज चुपचाप सब सहता रहा। सुबह होते ही, मनोज ने विनम्रता से फिर कहा, "काव्या, नाश्ता दे दो, आज ऑफिस में काम का बहुत दबाव रहेगा।" 
काव्या और भी भड़क गई, "तुमसे मैं तंग आ चुकी हूँ। मर जाओ! तुमने मेरा जीवन नरक बना रखा है।" 
मनोज ने उसकी बात का जवाब नहीं दिया, लेकिन उसकी आँखों में गहरा दर्द साफ दिख रहा था। वह चुपचाप ऑफिस के लिए निकल गया, लेकिन जाते वक्त उसके चेहरे पर उदासी और थकान की झलक साफ़ थी। काव्या को इसका ज़रा भी अहसास नहीं हुआ। 
कुछ ही घंटों बाद, जब काव्या बच्चों को स्कूल से घर लेकर आई, तो उसने देखा कि घर के बाहर भीड़ लगी थी। घबराते हुए वह अंदर गई और देखा कि मनोज का शव सामने पड़ा है। किसी ने बताया कि मनोज की मौत कार एक्सीडेंट में हो गई थी। 
काव्या की चीख निकल पड़ी, "मनोज, उठो! मैंने तुम्हारे लिए खाना बनाया है। मैं तुमसे फिर कभी नहीं लड़ूंगी। बस एक बार उठ जाओ।" लेकिन अब मनोज उसे सुनने के लिए ज़िंदा नहीं था। उसकी चुप्पी अब हमेशा के लिए थी। 
काव्या के कहे हुए शब्द, "मर जाओ," अब उसकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा अभिशाप बन गए थे। उसे यह एहसास हुआ कि उसकी ही कड़वी बातों ने उसे आज इस कड़वी सच्चाई के सामने ला खड़ा किया है। 
मनोज के जाने के बाद, काव्या की दुनिया उजड़ गई। रिश्तेदारों और ससुराल वालों ने उसे घर से बाहर कर दिया। वह घर, जो कभी उसका था, अब उसके लिए एक अजनबी जगह बन गया था।  अब काव्या के लिए हर दिन पछतावे से भरा हुआ था। उसे अब एहसास हुआ कि मनोज उसके जीवन का सबसे बड़ा सहारा था।
कटंहानी की सीख यही है कि रिश्तों को प्यार, सम्मान और समझदारी से संजोना चाहिए। गुस्से में कहे गए शब्द जीवनभर का पछतावा बन सकते हैं। हमें अपने अपनों की अहमियत तब समझनी चाहिए, जब वे हमारे साथ होते हैं, न कि जब वे हमें छोड़कर चले जाएं।