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Friday, June 7, 2024

युग बदला , मानुष बदले बदला सरयू का निर्मल जल

युग बदला , मानुष बदले 
बदला सरयू का निर्मल जल ।
पर शापित साकेत न बदली 
कर बैठी रघुवर से छल ।

क्यों यह पुण्य धरा मेरे प्रभु!
हर युग को अभिशप्त बनी ? 
जब जब सिंहासन मिलता है 
रार कोई अव्यक्त ठनी ।

क्यों यह अवधपुरी की मिट्टी 
बोल आसुरी बोल रही ? 
और कृतघ्न प्रजा भी क्योंकर 
इस सुख में विष घोल रही ? 

सदियों के निर्वासन का दुख 
अभी ठीक से घटा नहीं है ।
प्राण प्रतिष्ठा के उत्सव का दृश्य 
दृगों से छटा नहीं है ।

अभी रूधिर जो बहा राम हित 
शेष धरा पर उसकी लाली 
हत्यारों को 'मत ' दे देना 
दशरथ नंदन को ज्यों गाली  

स्वयं राम अब देख रहे हैं 
अवधपुरी के बिके नरों को ।
क्षुद्र स्वार्थ में अंधे होकर 
जनादेश जो दें असुरों को ।

मर्यादा का मान जिन्होंने आज 
ताक पर टाँग दिया है ।
राम द्रोह का दोष स्वयं ही 
अपने कुल हित माँग लिया है ।

सदियों सिसकी है जो माटी 
अपना राम लला पाने को ।
आज उसी के जन आतुर हैं 
रावण दल में मिल जाने को ।

कैसे कहूँ ह्दय की पीड़ा 
कैसे घायल कलम चलाऊँ ? 
असमंजस में पड़ा हुआ हूँ 
राम! तुम्हें क्या मुँह दिखलाऊँ ?
                  श्रीमान के एन मिश्र जी