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Friday, August 18, 2023

डर लगता है

शीशे के घर वालों को हरदम डर लगता है
आने जाने वालों के हाथों में पत्थर लगता है

रवायतें चीख़ती हैं इन दरकती दीवारों से
नये जमाने की ख़लिश का असर लगता है

किसी हादसे की फ़िक्र न हादसों से खाली
कितना संगदिल और बेदर्द ये शहर लगता है

खुदगर्जी के भी हैं यहां अजब गजब बहाने 
मौत जहां तमाशा, बस ख़बर सा लगता है

नजरें तलाश रही हैं फिर से वही हसीं नजारे
ऐसी दुनिया में मुश्किल अब बसर लगता है

कितना चैन कितना आराम इसके साये में है
किसी अदीब के आंगन का ये शज़र लगता है

और अंत में, 😊

मन्दिर में जलता दीया तो शुकूं देता है
घर जलाने वाले चिरागों से डर लगता है

श्री ब्रज माधव मिश्र जी