प्रकृति की गोद में पलते बढ़ते
नये उमंग और जोश में सदा ही रहते
भूमि वन काशी के वासी
वन गन्धर्व आदिवासी !
सर्वस्व समर्पण भाव के धनी
गहन गगन तले अरण्य मणि
अहर्निश जल जंगल जमीन के प्रहरी
जीव जन्तुओं से जिसका है मैत्री
आहार से विहार तक सदा जंगली ठाठ
नदी झरना के किनार लगा रहता है हाट
तरू लताएं देते रहता मन भावन उपहार
पावन सुन्दर हरा भरा सोभित इनके संसार
परंपरागत संस्कृति की वासी !
वन गन्धर्व आदिवासी !
ईश्वरीय अंश वास वनधाम
दया दयालुता ममता ख़ान
शांत स्वरूप सरल स्वभाव
निर्मल हृदय सहज धीरता भाव
सुख सुविधा नहीं चाह, नहीं दुःख परवाह
कुदरत ने जो दिया वही धन-धान अथाह
माँ धरती की कोख से परम धन्य संतान
तरू ताल तल रखवाले "वीर बिरसा" महान
जंगल जीव जंतु संग वासी !
वन गन्धर्व आदिवासी !
-श्री गोपाल पाठक जी