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Friday, February 3, 2023

दो तितलियां

तुम्हारी जमीन भी नहीं है उतनी 
जिसको 
तुम रोज रौदते हो 
तुम्हारे हिस्से 
उतना ही है 
जिस पर 
तुम्हारे कदमों के निशान 
बाकी रह गए हैं 

तुम्हारा समय भी नहीं है उतना
जिसको 
तुम रोज देखते हो 
बंद मुट्ठी से फिसलते 
तुम्हारा समय उतना ही है 
जिससे 
तुम्हारी तदबीरों से 
हाथ की रेखा बन गई है

तुम्हारा आसमान भी नहीं है उतना
जिसको
तुम रोज देखते हो 
परिंदों के साथ उड़ते 
तुम्हारा आसमान उतना ही है 
जिससे 
खिड़कियों से होकर 
कमरे में आती है 
तुम्हारे सपनों की 
दो तितलियां।
                  -श्री ब्रज माधव जी