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Wednesday, November 23, 2022

अब चलने की बेला आई


अब चलने की बेला आई
 साथी अब चलने की बेला आई 
चलना दूर बहुत है साथी,
दे दो मुझे विदाई 
मुझको दूर बहुत चलना है,
मंजिल दूर बहुत है,
दिन भी ढल चुका है,
अब तो रात अँधेरी आई |
दे दो मुझे विदाई ।
साथी साथ भला को देगा ।
है अंजना पथ मेरा
सदा हँसे तुम साथ हमारे
क्यों आती है आज रुलाई ।  
 क्षण भर जीवन ने खेल किया था 
अपना तुम्हें समझकर 
खेल खत्म हो चुका है, अब तो
सब अन्नी हुई पराई ।
हरदम सात रहे तुम मेरे
समझ न पाये पीर घनेरे
तुमको पा कितना पाला था 
जाती नहीं पीर बताई ।
मोह नहीं कुछ भी बाकि है
 इस तन की कौन बड़ाई 
रखा ही क्या है, माटी के पुतले में
हंस अकेला जाई | 
                       कविवर श्री पंचानन जी