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Sunday, July 10, 2022

श्री रामभक्त स्वामी संकर्षण दास जी

हिज होलीनेस पीठाधीश्वर श्री श्री 108 श्री स्वामी संकर्षणदास जी महाराज का जन्म अंग्रजों के शासनकाल में सम्वत् 1921 (सन्-1865) ग्राम - वैराव कपूर ,औरंगाबाद में एक शाकद्वीपीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। उक्त उपाधि ''हिज होलीनेस'' अंग्रेज़ी शासन में सरकार के द्वारा इन्हें प्राप्त हुई थी। आपके पिता श्री तारक प्रसाद मिश्र जी एवं माता श्रीमती जीरमानी देवी थी। आप दो भाई थे बड़े आप और छोटे श्री पुरूषोत्तम मिश्र जी उन्हें भारत के प्रथम राष्ट्रपति माननीय डॉ राजेन्द्र प्रसाद जी के द्वारा सम्मानित किया गया था। आप बाल्यकाल से ही प्रभु श्री राम के परमभक्त थे। प्रभु की कथा का श्रवण करना एवं उनका गुणगान करना आपके नित्यकर्म में शामिल था। आप बाल्यकाल से ही धर्म परायण, साधु परायण एवं सत्संग प्रेमी रहे थे। आप आयुर्वेद , ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र के परम ज्ञानी थे। ये विधाएँ आपके पूर्वजों के समय से चली आ रही है। आपके माता पिता भी भगवत्सेवा एवं संत सेवा में संलग्न रहते थे। उनके सारे गुण आप दोनों भाईयों में विद्यमान थे। आप का घर में मन न लगने के कारण अपने 18 वर्ष की अवस्था में गृह का परित्याग कर दिया। उसी समय श्री श्री 108 श्री चतुर्थ पौहारी बाबा श्री मणीरामदास जी से गुरुदीक्षा प्राप्त की थी। दीक्षा प्राप्ति के बाद अपने कुछ जीवन वाराणसी में एवं अयोध्या मेंव्यतीत किया था। फिर आप श्री वृन्दावन मथुरा आ गये थे। यहाँ आपने ब्रज 84 कोस की परिक्रमा किया। परिक्रमा पुरा होने पर अपने श्री गिरिराज जी में अपना निवास स्थान बनाया। वहीं पर आप अपने आराध्य श्री सीताराम जी की सेवा करने लगे और श्री गोवर्धन परिक्रमा किया करते थे। आपने 12 वर्षो तक वहीं गिरिराज जी में ( पूछरी नामक स्थान पर ) तपस्या किया। जिससे आपको साक्षात् श्री राधारानी जी के दर्शन हुआ। श्री राधारानी जी के दर्शन से आप धन्य हो गये। आपने अपने आगे के जीवन का मार्गदर्शन करने को कहा , तब श्री राधारानी जी ने आपको ब्रज मण्डल क्षेत्र में श्री राम मन्दिर बनाने का आदेश दिया , पर आप भुल गए फिर आपको गिरिराज जी परिक्रमा करते समय पांच वर्ष की कन्या के रूप में आ कर मन्दिर बनवाने के लिए याद दिलाया। उनके आदेशानुसार आपने श्री वृन्दावन धाम में दो बार बोलने के कारण दो मन्दिरों की स्थापना कि । जिसमें प्रथम मन्दिर ज्ञान गुड़री में श्री साकेत वैकुण्ठ, श्री राममन्दिर , श्री रामबाग एवं द्वितीय वृन्दावन  नगर निगम के सामने श्री सीताराम निधि मन्दिर है। यहां भी आपने अपना जीवन संत सेवा , प्रभु सेवा ,गो सेवा ,विद्वत् सेवा , कन्या दान सेवा आदि अनेक सेवाओं में व्यतीत किया। आपने अपने जीवन में अनेक कार्य किये। बालकों के लिए मुफ्त संस्कृत पाठशाला कि व्यवस्था किया जहां आज भी श्रीमद्भागवत कथा, श्री राम कथा, कर्मकांड, ज्योतिष पढ़ाया जाता है। निरन्तर गो सेवा के लिए गोशाला का निर्माण कराया। कई कुंँवारी कन्याओं का विवाह कराया । आपका साकेत वैकुण्ठवास सम्वत् 2023 (सन् 1966 ) को हुआ ।