|| श्री जानकीवल्लभो विजयते ||
"गणपति बप्पा मोरिया"
|| श्रीगणेश चतुर्थी व्रत ||
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी तिथि को श्रीगणेश चतुर्थी व्रत के नाम से शुशोभित किया गया है | श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत आदि काल से चला आ रहा है | श्री गणेश चतुर्थी के दिन प्रातः काल उठ कर सर्व प्रथम श्री हरिनाम स्मरण करना चाहिये | उसके बाद शौच आदि से निवृत होकर स्नान करके शुद्ध धुले वस्त्र पहन कर आम, जामुन के पत्ते और केले के खम्भों से मण्डप सजा कर श्री आचार्य जी ( पुरोहित जी ) के द्वारा विघ्नहरण श्रीगणपति जी की स्थापना करके पञ्चोपचार से पूजन करना चाहिये | पूजन के बाद श्रीगणेश चालीसा या श्रीगणेश स्तोत्रम् का पाठ अवश्य करें | अगर सम्भव हो तो व्रत भी करना चाहिये |
पुरातन शास्त्रों में भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को उदित होने वाले चन्द्रमा को कलंकित चन्द्रमा की उपाधि दी गयी है | भूल से भी इस दिन के चन्द्र दर्शन करने से झूठे कलंक का भागीदार बनना पड़ता है | भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन अगर भूल से भी चन्द्र दर्शन हो जाय तो कलंकित चन्द्र दोष शान्ति के लिए निम्न मन्त्र का जप सात बार करना चाहिये -
- मन्त्र -
सिंह: प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हत : |
सुकुमारकुमारोदीस्तवह्रोश स्यमन्तक: ||
|| बोलो श्री गणपति बप्पा की जय ||
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