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Tuesday, July 14, 2009

तेरा हूँ

// श्री जानकीवल्लभो विजयते //

तेरा हूँ

कविवर
श्री विश्वनाथ मिश्र जी "पंचानन "
पटना (बिहार) भारत

जो भी हूँ जैसा, तेरा हूँ
चाहे बुरा हूँ या भला हूँ |
यह सच है तुमने कभी नहीं
किन्तु मै जब - जब तुम्हे हूँ
फिर भी तेरा हूँ, तेरा हूँ
चाहे बुरा हूँ या भला हूँ |
मैं असंख्यों में भटकता एक
तुम असंख्यों के लिए बस एक |
तुम कहाँ नहीं ? कह रहे सभी
पर पा लेना क्या सहज कभी ?
एक झलक पाने की ललक ले
शब्दों में ढूँढने चला हूँ |
ये शब्द भी तो तेरे है
बस कहने ही को मेरे है |
ये चित्र सारे, भाव सारे
केवल तेरे ही तेरे है |
तुमने जैसा भी जब चाहा
मै सदैव वैसा ही ढला हूँ |
स्वतःप्रसूत हो तुम ही बोले
छू गहराई, अन्तःमन खोले |
मै क्या हूँ, यह मै क्या जानूँ,
यह मेरा है, क्यों कर मानूँ |
तुम पर रहा समर्पित सदैव
जैसे पले वैसे पला हूँ |
जग में तेरी कृतियाँ अनेक
उनमे कितने में स्वविवेक ?
यह तो तुम ! चाहा जिसे जब भी
उसका करा दिया अभिषेक |
मै भी उन्ही बिखरी पड़ी
कलाकृतियों की एक कला हूँ |
आश्वस्त, निश्चिन्त हूँ, नजर तेरी
कभी मुझ पर भी पड़ेगी
मेरी झोली जो खाली है
तेरी ही कृपा से भरेगी |
क्योकि जैसा हूँ, तेरा हूँ,
चाहे बुरा हूँ या भला हूँ |

जय श्री राधे