|| श्री जानकीबल्लभो जयति ||
बनिहै न बनी हैं
'' बृज भाषा ''
संकलन कर्ता :-
पं० लक्ष्मीकान्त शर्मा ( कौशिक )
श्री धाम वृन्दाबन, भारत
उरझे भवजाल के बन्धन में,
बनिता, सुत में अति प्रीति घनी है |
ममता मद में परि ना कबहूँ,
विनता सुत - नाथ की कीर्ति भनी है ||
बिन '' बिष्णु '' नहीं भवसागर ते,
कोई पार उतारनहार धनी है |
जिनकी हरिते न बनि तिनकी,
न इतै न उतै बनिहै न बनी है ||
सुचि मान रहे जेहि को वह देह,
तो दोष भरी अरु पाप सनी है |
सुख से हँसि कंठ लगावत हो जेहि,
को तिरिया वह नागफनी है ||
सुधि लेत जो '' बिष्णु '' चराचर की,
गिनती तिन के गुन की न गनी है |
जिनकी हरिते न बनी तिनकी,
न इतै न उतै बनिहै न बनी है ||
जय श्री राधे