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Monday, June 1, 2009

बनिहै न बनी हैं

|| श्री जानकीबल्लभो जयति ||

बनिहै न बनी हैं
'' बृज भाषा ''

संकलन कर्ता :-
पं० लक्ष्मीकान्त शर्मा ( कौशिक )
श्री धाम वृन्दाबन, भारत

उरझे भवजाल के बन्धन में,
बनिता, सुत में अति प्रीति घनी है |
ममता मद में परि ना कबहूँ,
विनता सुत - नाथ की कीर्ति भनी है ||

बिन '' बिष्णु '' नहीं भवसागर ते,
कोई पार उतारनहार धनी है |
जिनकी हरिते न बनि तिनकी,
न इतै न उतै बनिहै न बनी है ||

सुचि मान रहे जेहि को वह देह,
तो दोष भरी अरु पाप सनी है |
सुख से हँसि कंठ लगावत हो जेहि,
को तिरिया वह नागफनी है ||

सुधि लेत जो '' बिष्णु '' चराचर की,
गिनती तिन के गुन की न गनी है |
जिनकी हरिते न बनी तिनकी,
न इतै न उतै बनिहै न बनी है ||

जय श्री राधे