// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
श्री सूर्य षष्ठी व्रत
आचार्य लालभूषण मिश्र जी
( संस्कृत शिक्षक )
गया ( बिहार ) भारत
षष्ठी माता प्रसन्न होकर सन्तान प्रदान करती हैं तथा सन्तान को दीर्घायु करती हैं | श्रीसूर्यनारायण प्रसन्न होकर धन एवं आरोग्यता प्रदान करते हैं | छठ व्रत के पूजन के अर्न्तगत नदी किनारे मिट्टी के दो गोले बनाते हैं एक गोले में षष्ठी माता तथा दूसरे गोले में श्रीसूर्यनारायण जी की पूजा अर्चना करते हैं | इस छठ व्रत का उपवास सूर्योदय कालीन षष्ठी तिथि को होता है तथा व्रत का पारायण सूर्योदय कालीन सप्तमी तिथि में होता है |
यह व्रत प्रत्येक वर्ष में कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी एवं सप्तमी तिथि में सम्पन्न होता है तथा दूसरा चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी एवं सप्तमी तिथि में सम्पन्न होता है | श्रीसूर्यनारायण जी का पहला अर्ध्य षष्ठी तिथि को सायंकाल में तथा दूसरा अर्ध्य सप्तमी तिथि को प्रात: काल में होता है | छठ व्रत करने वाले एक ही वस्त्र पहन कर स्नान करके गीले वस्त्र में ही श्रीसूर्यनारायण जी को अर्ध्य देते हैं | दो बार कच्चे दूध से अर्ध्य दिया जाता है तथा तीन बार जल से अर्ध्य दिया जाता है | प्रत्येक बार अर्ध्य देकर परिक्रमा की जाती है | छठ व्रत के प्रसाद की विशिष्टता है कि गेंहू के आटे एवं गुड़ से बने हुए पकवान पर श्रीसूर्यनारायण जी के रथ के चक्र का आकार अंकित रहता है | यह चक्र लकड़ी के साँचे में बना रहता है | इस के साथ चावल के आटे एवं गुड़ का बना कच्चा प्रसाद भी रहता है |
छठ व्रत के प्रभाव से राजा शर्याति की पुत्री सुकन्या ने अपने पति महर्षि च्यवन के विनष्ट नेत्र की ज्योति प्राप्त की थी | राजा प्रियव्रत के मृत पुत्र षष्ठी देवी की प्रसन्नता से जीवित होकर दीर्घायु हुए थे | छठ व्रत के आचरण से द्रौपदी ने पाण्डवों को दीर्घायु किया तथा उनका खोया हुआ राज्य प्राप्त हुआ था | मगध सम्राट जरासन्ध के पूर्वज का कुष्ठ रोग का निवारण इसी व्रत के प्रभाव से हुआ था | पौराणिक श्रीसूर्य मन्दिर में छठ व्रत का अधिक महत्त्व है | श्री गयाधाम में पौराणिक श्रीसूर्य मन्दिर एवं श्रीसूर्य कुण्ड फलगू नदी के पश्चिम तट पर देव घाट से पश्चिम एवं श्रीविष्णुपद मन्दिर से उत्तर विराजमान हैं | यहाँ श्रीविष्णु स्वरूप में श्रीसूर्यनारायण जी की प्रतिमा स्थापित है | यहाँ सायं कालीन श्रीसूर्य भगवान जी का विग्रह है जिस कारण सायं काल में श्रीसूर्यार्ध्य प्रदान किया जाता है | फलगू नदी के पश्चिम तटपर उत्तर मानस पिता महेश्वर मोहल्ले में प्रात:कालीन श्रीसूर्य नारायण जी की पौराणिक प्रतिमा ब्रह्म स्वरूप में विराजमान है जो शीतला मन्दिर के मध्य भाग में है | यहाँ श्रीसूर्य कुण्ड भी है | यहाँ प्रात:काल में छठ व्रत का अर्ध्य प्रदान किया जाता है | श्री गया धाम में पौराणिक श्रीसूर्य मन्दिर फलगू नदी के पश्चिम तट पर ब्राह्मणी घाट मोहल्ले में विराजमान है | यहाँ मध्यान्ह कालीन श्रीसूर्य भगवान जी का विग्रह श्रीशंकर जी के स्वरूप हैं | यहाँ प्रात:काल में तथा सायं काल में दोनों श्रीसूर्यार्ध्य प्रदान किया जाता है |
उक्त श्रीसूर्य नारायण जी की तीनो विग्रह एक ही मन्दिर में देवधाम, औरंगाबाद ( बिहार ) में विराजमान है | यहाँ छठ व्रत का सर्वाधिक महत्व है | यहाँ मंदिर तथा पोखर पौराणिक है | उक्त पोखर के जल से तीर्थराज प्रयाग के राजा ऐल का कुष्ठ रोग निवारण हुआ था | इसी पोखर से तीनो मूर्तीयाँ निकली थीं जो देव में श्रीसूर्य मंदिर में प्रतिष्ठित हैं | श्रीसूर्य नारायण जी को अर्ध्य इसी पोखर में दिया जाता है |
औरंगाबाद जिले के देवकुण्ड नामक धाम से ही छठ व्रत की शुरुआत हुई थी | यहाँ का पोखर पंच कोण है जहाँ छठ व्रत का अर्ध्य प्रदान किया जाता है | नागकन्या के उपदेश से सुकन्या ने छठ व्रत किया था | सुकन्या के पति च्यवन ऋषि को कुमारावस्था में सुकन्या ने अनजाने में समाधि से विचलित किया था | तपस्यारत महर्षि चय्वन की आँख में सुकन्या द्वारा कांटे चुभाने से वे समाधि से विचलित हुए थे | ऋषि के शाप से मुक्त होने के लिए सुकन्या के पिता राजा शर्याति ने कन्यादान किया सुकन्या ने अपने पति की आँख को छठ व्रत द्वारा पुनः प्राप्त किया |
जय श्री राधे