// श्री जानकीवल्लभो विजयते //
लड्डू, लट्ठ और लपेट कोड़े
पं. लक्ष्मीकान्त शर्मा (कौशिक)
श्री धाम वृन्दाबन-भारत
फाल्गुन के महीने में शुक्ल अष्टमी तिथि को बरसाने में लठामार होली का आनन्द भक्तों को प्राप्त होता है | हुरियारि ने नन्दगाँव से आये हुरियारों पर लाठी से प्रहार करती है और वह प्रहार को ढाल की ओट से बचाते हैं सप्तमी तिथि को बरसाने में भक्तों के ऊपर लगभग ५०१ किलो बूँदी के लड्डू फेंके जाते हैं | जिसे लड्डू होली के नाम से सभी जानते हैं फाग गीत और रसिया व अवीर गुलाल के रंग में सब सरावोर हो जाते हैं | नवमी तिथि को परम्परा के अनुसार बरसाना के हुरियारे और नन्दगाँव की हुरियारिनों के बीच नन्दगाँव में लट्ठ मार होली होती है | समूचा ब्रज होली के रंग में सरावोर हो जाता है
रावलगाँव जो श्रीराधारानी की जन्मभूमि के रूप में मान्य है वहाँ भी अवीर गुलाल व फूलों से भक्तों को अपार आनन्द की अनुभूति होती है कन्हैया जी के गाँव गोकुल में छड़ी व फूलों होली का उत्सव होता है और विश्व प्रसिद्ध ठा. श्रीबाँकेबिहारी जी मन्दिर, श्रीवृन्दाबन धाम में एकादसी ( रंग भरनी ) के दिन रंगों की व गुलाव जल और अवीर की होली भक्तों को अपार सुख प्रदान करती है |
मथुरा में श्री द्वारकाधीश मन्दिर में भी होली उत्सव धूमधाम से ढप की ताल पर मनाया जाता है | तथा श्रीकृष्णजन्म भूमि पर भी लठामार होली का आनन्द हिलोरें लेता है | ब्रज में एक ही स्थान ऐसा अनूठा है जहाँ होरी नहीं होरा ( हुरंगा ) होता है | वह स्थान हैं वल्देव ( दाऊ जी ) यहाँ पर टेसू के फूलों को बड़े होदों में महीनों पहले भिगोया जाता है फिर दौज तिथि को दाऊ जी मन्दिर प्रांगण में हुरियारिन और हुरियारे आमने सामने होते हैं | एक तरफ से तेज पानी ( टेसू रंग ) की मार और फिर हुरियारियों द्वारा हुरियारों के कपड़े फाड़ कर कपड़ों के कोड़े बनाकर मारती हैं | यह दृश्य बड़ा ही मनोहारी व प्रफुल्लित करने वाला होता है | दौज तिथि से ही समूचे ब्रज में जगह - जगह हुरंगों का आयोजन किया जाता है | ब्रज में लड्डू, जलेबी, फूल, टेसू, अवीर और गुलाल के साथ - साथ विभिन्न प्रकार के रंगों से एक दूसरे को सरावोर करते हैं |
देश के कौने - कौने से ही नहीं अपितु विश्व के अनेकों देशों से भक्त इस आनन्द को प्राप्त करने और प्रेम, सदभाव व एकता के रस का रसास्वादन करने ब्रज व वृन्दाबन में आते हैं | सभी के अन्दर एक भाव होता है और यही सन्देश होता है यह महा - महोत्सव कि पिछला जो भी हो लिया सो हो लिया आज व अभी से एक मयी रससिक्त जीवन की शुरुआत करें | तभी तो कहा गया है कि "जग होरी, ब्रज होरा" ||
जय श्री राधे